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________________ विपाकसूत्र २७७ कामध्वजा गणिका है। वह ७२ कला, ६४ गणिका-गुण, २९ अन्य गुण, २१ रतिगुण, ३२ पुरुषोचित कामोपचार आदि में निपुण थी; विविध भाषाओं व लिपियों में कुशल थी; संगीत, नाट्य, गांधर्व आदि विद्याओं में प्रवीण थी। उसके घर पर ध्वज फहराता था। उसकी फ़ीस हजार मुद्राएँ थीं । उसे राजा ने छत्र, चामर आदि दे रखे थे। इस प्रकार वह प्रतिष्ठित गणिका थी। कामध्वजा गणिका के अधीन हजारों गणिकाएँ थीं। विजयमित्र नामक एक सेठ का पुत्र उज्झितक इस गणिका के साथ रहने लगा एवं मानवीय कामभोग भोगने लगा। यह उज्झितक पूर्वभव में हस्तिनापुर निवासी भीम नामक कूटग्राह (प्राणियों को फैदे में फंसानेवाला) का गोत्रास नामक पुत्र था। उज्झितक का पिता विजयमित्र व्यापार के लिए विदेश रवाना हुआ। वह मार्ग में लवण समुद्र में डूब गया। उसकी भार्या सुभद्रा भी इस दुर्घटना के आघात से मृत्यु को प्राप्त हुई। उज्झितक कामध्वजा के साथ ही रहता था। वह पक्का शराबी, जुआरी, चोर व वेश्यागामी बन चुका था। दुर्भाग्यवश इसी समय मित्र राजा की भार्या श्री रानी को योनिशूल रोग हआ। राजा ने संभोग के लिए कामध्वजा को अपनी उपपत्नी बनाकर उसके यहाँ से उज्झितक को निकाल दिया। राजा की मनाही होने पर भी एक बार उज्झितक कामध्वजा के यहाँ पकड़ा गया। राजा के नौकरों ने उसे खूब पीटा, पीट-पीट कर अधमरा कर दिया और प्रदर्शन के लिए गांव में घुमाया। महावीर के शिष्य इन्द्रभूति ने उसे देखा एवं महावीर से पूछा कि यह उज्झितक मर कर कहाँ जायेगा ? महावीर ने मृगापुत्र की मरणोतर दुर्गति की भांति इसकी भी दुर्गति बताई व कहा कि अन्त में यह महाविदेह में जन्म लेकर मुक्त होगा। उज्झितक की वेश्यागमन के कारण यह गति हुई। अभग्नसेन : तीसरी कथा में अभग्नसेन नामक चोर का वर्णन है। वह पूर्वभव में अति पातको, मांसाहारी तथा शराबी था । स्थान का नाम पुरिमताल (प्रयाग) बताया गया है। इसका भविष्य भी मृगापुत्र के ही समान समझना चाहिए। इस कथा में चोरी और हिंसा के परिणाम की चर्चा है । शकट: चौथी कथा शकट नामक युवक की है। यह कथा उज्झितक की कथा से लगभग मिलती-जुलती है । इसमें वेश्या का नाम सुदर्शना तथा नगरी का नाम साहजनी-शाखाञ्जनी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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