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प्रश्नव्याकरण
२७१ ८. संसार को ईश्वरकृत माननेवाले ९. सारे संसार को विष्णुमय माननेवाले १०. आत्मा को एक, अकर्ता, वेदक, नित्य, निष्क्रिय, निर्गुण, निलिप्त
माननेवाले ११. जगत् को यादृच्छिक माननेवाले १२. जगत् को स्वभावजन्य माननेवाले १३. जगत् को देवकृत माननेवाले
१४. नियतिवादी-आजीवक हिंसादि आस्रव :
इसके अतिरिक्त संसार में जिस-जिस प्रकार का असत्य व्यवहार में, कुटुम्ब में, समाज में, देश में व सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित है उसका विस्तृत विवेचन किया गया है। इसी प्रकार हिंसा, चौर्य, अब्रह्मचर्य एवं परिग्रह के स्वरूप व दूषणों का खुब लंबा वर्णन किया गया है। हिंसा का वर्णन करते समय वेदिका, विहार, स्तूप, लेण, चैत्य, देवकुल, आयतन आदि के निर्माण में होनेवाली हिंसा का निर्देश किया गया है। वृत्तिकार ने विहार आदि का अर्थ इस प्रकार दिया है : विहार अर्थात् बौद्धविहार, लेण अर्थात् पर्वत में काटकर बनाया हुआ घर, चैत्य अर्थात् प्रतिमा, देवकुल अर्थात् शिखरयुक्त देवप्रासाद ।
जो लोग चैत्य, मंदिर आदि बनवाने में होनेवाली हिंसा को गिनती में नहीं लेते उनके लिए इस सूत्र का मूलपाठ तथा वृत्तिकार का विवेचन एक चुनौती है। इस प्रकरण में वैदिक हिंसा का भी निर्देश किया गया है एवं धर्म के नाम पर होनेवाली हिंसा का उल्लेख करना भी सूत्रकार भूले नहीं हैं। इसके अतिरिक्त जगत् में चलनेवाली समस्त प्रकार की हिंसाप्रवृत्ति का भी निर्देश किया गया है। हिंसा के संदर्भ में विविध प्रकार के मकानों के विभिन्न भागों के नामों का, वाहनों के नामों का, खेती के साधनों के नामों का तथा इसी प्रकार के हिंसा के अनेक निमित्तों का निर्देश किया गया है। इसी प्रसंग पर अनार्य-म्लेच्छ जाति के नामों की भी सूची दी गई है।
असत्य के प्रकरण में हिंसात्मक अनेक प्रकार की भाषा बोलने का निषेध किया गया है।
चौर्य का विवेचन करते हुए संसार में विभिन्न प्रसंगों पर होनेवाली विविध चोरियों का विस्तार से वर्णन किया गया है ।
अब्रह्मचर्य का विवेचन करते हुए सर्वप्रकार के भोगपरायण लोगों, देवों, देवियों, चक्रवतियों, वासुदेवों, माण्डलिक राजाओं एवं इसी प्रकार के अन्य
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