SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास व्यक्तियों के भोगों का वर्णन किया गया है। साथ ही शरीर के सौन्दर्य, स्त्री के स्वभाव तथा विविध प्रकार के कायोपचार का भी निरूपण किया गया है। इस प्रसंग पर स्त्रियों के निमित्त होनेवाले विविध युद्धों का भी उल्लेख हुआ है । वृत्तिकार ने एतद्विषयक व्याख्या में सीता, द्रौपदी, रुक्मिणी, पद्मावती, तारा, रक्तसुभद्रा, अहल्या (अहिन्निका), सुवर्णगुलिका, रोहिणी, किन्नरी, सुरूपा व विद्युन्मति की कथा जैन परम्परा के अनुसार उद्धृत की है। पांचवें आस्रव परिग्रह के विवेचन में संसार में जितने प्रकार का परिग्रह होता है अथवा दिखाई देता है उसका सविस्तार निरूपण किया गया है। परिग्रह के निम्नोक्त पर्याय बताये गये हैं : संचय, उपचय, निधान, पिण्ड, महेच्छा, उपकरण, संरक्षण, संस्तव, आसक्ति। इन नामों में समस्त प्रकार के परिग्रह का समावेश है। अहिंसादि संवर: प्रथम संवर अहिंसा के प्रकरण में विविध व्यक्तियों द्वारा आराध्य विविध प्रकार की अहिंसा का विवेचन है । इसमें अहिंसा का के पोषक विभिन्न अनुष्ठानों का भी निरूपण है। सत्यरूप द्वितीय संवर के प्रकरण में विविध प्रकार के सत्यों का वर्णन है। इसमें व्याकरणसम्मत वचन को भी अमुक अपेक्षा से सत्य कहा गया है तथा बोलते समय व्याकरण के नियमों तथा उच्चारण की शुद्धता का ध्यान रखने का निर्देश किया गया है। प्रस्तुत प्रकरण में निम्नलिखित सत्यों का निरूपण किया गया है : जनपदसत्य, संमतसत्य, स्थापनासत्य, नामसत्य, रूपसत्य, प्रतीतिसत्य, व्यवहारसत्य, भावसत्य, योगसत्य और उपमासत्य । जनपदसत्य अर्थात् तद्-तद् देश की भाषा के शब्दों में रहा हुआ सत्य । संमतसत्य अर्थात् कवियों द्वारा अभिप्रेत सत्य । स्थापनासत्य अर्थात् चित्रों में रहा हुआ व्यावहारिक सत्य । नामसत्य अर्थात् कुलवर्धन आदि विशेषनाम । रूप सत्य अर्थात् वेश आदि द्वारा पहचान । प्रतीतिसत्य अर्थात् छोटे-बड़े का व्यवहारसूचक वचन । व्यवहारसत्य अर्थात् लाक्षणिक भाषा । भावसत्य अर्थात् प्रधानता के आधार पर व्यवहार, जैसे अनेक रंगवाली होने पर भी एक प्रधान रंग द्वारा ही वस्तु की पहचान । योगसत्य अर्थात् सम्बन्ध से व्यवहृत सत्य, जैसे छत्रधारी आदि । उपमासत्य अर्थात् समानता के आधार पर निर्दिष्ट सत्य, यथा समुद्र के समान तालाब, चन्द्र के समान मुख आदि । अचौर्य सम्बन्धी प्रकरण में अचौर्य से संबंधित समस्त अनुष्ठानों का वर्णन है । इसमें अस्तेय की स्थूल से लेकर सूक्ष्मतम तक व्याख्या की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy