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जैन साहित्य का बृहद् इतिहस
श्रमण-श्रमणियों की विद्यमानता का आधार भी एक दृष्टि से श्रावक-श्राविकाएँ ही हैं | श्रावकसंस्था के आधार के बिना श्रमणसंस्था का टिकना संभव नहीं । श्रावकधर्म की भित्ति जितनी अधिक सदाचार व न्याय-नीति पर प्रतिष्ठित होगी, श्रमणधर्म की नींव उतनी ही अधिक दृढ़ होगी । इस विचार से श्रावक-श्राविकाओं के जीवनव्यवहार की व्यवस्था इसमें की गई है। आरंभ-समारंभकारी कह देने से काम नहीं चलता अपितु एवं सद्विचार की प्रतिष्ठा करना इसका उद्देश्य है ।
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गृहस्थकर्मों को केवल गृहस्थधर्मं में सदाचार
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