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________________ नवम प्रकरण अन्तकृतदशा आठवाँ अंग अंतगडदसा है। इसका संस्कृत रूप अंतकृतदशा अथवा अंतकृद्दशा है। अंतकृत अर्थात् संसार का अंत करनेवाले। जिन्होंने अपने संसार अर्थात् भवचक्र-जन्ममरण का अंत किया है अर्थात् जो पुनः जन्म-मरण के चक्र में फंसनेवाले नहीं हैं ऐसी आत्माओं का वर्णन अन्तकृतदशा में उपलब्ध है । इसका उपोद्घात भी विपाकसूत्र के ही समान है। दिगम्बर परम्परा के राजवार्तिक आदि ग्रन्थों में अन्तकृतों के जो नाम मिलते है वे स्थानांग में उल्लिखित नामों से अधिकांशतया मिलते-जुलते हैं। स्थानांग में निम्नोक्त दस नामों का निर्देश है :-- नमी, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमाली, भगाली, किंक्रम, पल्लतेतिय और फाल अंबडपुत्र । समवायांग में अन्तकृतदशा के दस अध्ययन व सात वर्ग बताये गये हैं । नामों का उल्लेख नहीं है । नन्दीसूत्र में इस अंग के दस अध्ययन व आठ वर्ग बताये गये है। नामों का उल्लेख इसमें भी नहीं है। वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृतदशा में न तो दस अध्ययन ही हैं और न उपर्युक्त नामवाले अन्तकृतों का ही वर्णन है। इसमें नन्दी के निर्देशानुसार आठ वर्ग हैं, १. (अ) अभयदेवविहित वृत्तिसहित-आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९२०; धनपत सिंह, कलकत्ता, सन् १८७५. (आ) प्रस्तावना आदि के साथ-पी. एल. वैद्य, पूना, सन् १९३२. (इ) अंग्रेजी अनुवाद-L. D. Barnett, 1907. (ई) अभयदेवविहित वृत्ति के गुजराती अनुवाद के साथ-जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर, वि. सं. १९९०. (उ) संस्कृत व्याख्या व उसके हिन्दी-गुजराती अनुवाद के साथ-मुनि घासीलाल, जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, सन् १९५८. (ऊ) हिन्दी अनुवादसहित-अमोलक ऋषि, हैदराबाद, वी. सं. २४४६. (ऋ) गुजराती छायानुवाद-गोपालदास जीवाभाई पटेल, जैन साहित्य प्रकाशन समिति, अहमदाबाद, सन् १९४०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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