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________________ उपासकदशा २५९ ही उन्हें देख सकते हैं, घर के अन्य लोग नहीं। ऐसा क्यों ? क्या यह नहीं कहा जा सकता कि यह सब उन श्रावकों की केवल मनोविकृति है ? एतद्विषयक विशेष मनोवैज्ञानिक अनुसंधान की आवश्यकता है । वैदिक एवं बौद्ध परम्परा में भी इस प्रकार के विघ्नकारी देवों-दानवों व पिशाचों की कथाएँ मिलती हैं। मांसाहारिणी स्त्री व नियतिवादी श्रावक : ___ इस अंगग्रन्थ में एक श्रावक की मांसाहारिणी स्त्री का वर्णन है । इस श्रावक की तेरह पत्नियां थीं। तेरहवीं मांसाहारिणी पत्नी रेवती ने अपनी बारह सौतों की हत्या कर दी थी। वह अपने पीर से गाय के बछड़ों का मांस मंगवा कर खाया करती थी। इस सूत्र में एक कुम्भकार श्रावक का भी वर्णन है जो मंखलिपुत्र गोशालक का अनुयायी था। बाद में भगवान् महावीर ने उसे युक्तिपूर्वक अपना अनुयायी बना लिया था। इस ग्रंथ में कुछ हिंसाप्रधान धंधों का श्रावकों के लिए निषेध किया गया है, जैसे शस्त्र बनाना, शस्त्र बेचना, विष बेचना, बाल का व्यापार करना, गुलामों का व्यापार करना आदि । एतद्विषयक विशेष समीक्षा 'भगवान् महावीरना दश उपासको' नामक पुस्तक में दिये हुए उपोद्घात एवं टिप्पणियों में देखी जा सकती है । आनन्द का अवधिज्ञान : श्रावक को अवधिज्ञान किस हद तक हो सकता है, इस विषय में आनन्द व गौतम के बीच चर्चा है। आनन्द श्रावक कहता है कि मेरी बात ठीक है जबकि गौतम गणधर कहते है कि तुम्हारा कथन मिथ्या है । आनन्द गौतम की बात मानने को तैयार नहीं होता । गौतम भगवान् महावीर के पास आकर इसका स्पष्टीकरण करते हैं एवं भगवान् महावीर की आज्ञा से आनन्द के पास जाकर अपनी गलती स्वीकार कर उससे क्षमायाचना करते हैं। इससे गौतम की विनीतता एवं ऋजुता तथा आनन्द की निर्भीकता एवं सत्यता प्रकट होती है । उपसंहार : विद्यमान अंगसूत्रों व अन्य आगमों में प्रधानतः श्रमण-श्रमणियों के आचारादि का निरूपण ही दिखाई देता है। उपासकदशांग ही एक ऐसा सूत्र है जिसमें गहस्थ धर्म के सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डाला गया है। इससे श्रावक अर्थात श्रमणोपासक के मूल आचार एवं अनुष्ठान का कुछ पता लग सकता है । श्रमणश्रमणी के आचार अनुष्ठान की ही भांति श्रावक-श्राविका के आचार-अनुष्ठान का निरूपण भी अनिवार्य है क्योंकि ये चारों ही संघ के समान स्तम्भ हैं। वास्तव में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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