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व्याख्याप्रज्ञप्ति
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इसका नाम
इकतालीसवें शतक में युग्म की अपेक्षा से जीवों की विविध प्रवृत्तियों के विषय में चर्चा की गई है। इस शतक में १९६ उद्देशक हैं । राशियुग्म शतक है । यह व्याख्याप्रज्ञप्ति का अन्तिम शतक है । उपसंहार :
इस अंग में कुछ बातें बार-बार आती है । इसका कारण स्थानभेद, - पुच्छकभेद तथा कामभेद है । कुछ बातें ऐसी भी हैं जो समझ में ही नहीं आतीं। उनके बारे में वृत्तिकार ने भी विशेष स्पष्टीकरण नहीं किया है इस अंग पर चूणि, अवचूरिका तथा लघुटीका भी उपलब्ध है । चूर्णि तथा अवचूरिका अप्रकाशित हैं ।
ग्रन्थ के अन्त में एक गाथा द्वारा गुणविशाल संघ का स्मरण किया गया है तथा श्रुतदेवता की स्तुति की गई है । इसके बाद सूत्र के अध्ययन के उद्देशों को लक्ष्य कर समय का निर्देश किया गया है । अन्त में गौतमादि गणधरों को नमस्कार किया गया है । वृत्तिकार के कथनानुसार इसका सम्बन्ध किसी प्रतिलिपिकार के साथ है । अन्त ही अन्त में शान्तिकर श्रुतदेवता का स्मरण 'किया गया है । साथ ही कुम्भघर, ब्रह्मशान्तियक्ष, वैरोट्या विद्यादेवी तथा अंतहुंडी - नामक देवी को याद किया गया है । प्रतिलिपिकार ने निर्विघ्नता के लिए • इन सब की प्रार्थना की है । इनमें से अंतहुंडी नाम के विषय में कुछ पता नहीं लगता ।
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