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________________ सप्तम प्रकरण ज्ञाताधर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा' का उपोद्घात विपाकसूत्र के उपोद्घात के ही समान है। इसमें सुधर्मास्वामी के 'ओयंसी तेयंसी चउणाणोवगते चोदसपुव्वी' आदि अनेक विशेषण उपलब्ध हैं। यहाँ 'विहरति' क्रियापद का तृतीय पुरुष में प्रयोग हुआ है । सुधर्मास्वामी के वर्णन के बाद जो जंबूस्वामी का वर्णन आता है उसमें भी 'घोरतवस्सी' आदि अनेक विशेषणों का प्रयोग हुआ है। यहाँ भी क्रियापद का प्रयोग तृतीय पुरुष में ही हुआ है। इससे प्रतीत होता है कि यह उपोद्घात भी सुधर्मा व जम्बू के अतिरिक्त किसी अन्य गीतार्थ महानुभाव ने बनाया है। प्रस्तुत अंगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध में ज्ञातरूप-उदाहरण रूप उन्नीस अध्ययन हैं तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध में धर्मकथाओं के दस वर्ग हैं । इन वर्गों में चमर, बलि, चन्द्र, सूर्य, शक्रेन्द्र, ईशानेन्द्र आदि की पटरानियों के पूर्वभव की कथाएँ है। ये पटरानियाँ अपने पूर्वभव में भी स्त्रियाँ थीं। इनके जो नाम यहाँ दिये गये हैं वे सब पूर्वभव के ही नाम हैं । इस प्रकार इनके मनुष्यभव के ही नाम: देवलोक में भी चलते हैं। प्रथम अध्ययन 'उक्खित्तणाय' में अनेक विशिष्ट शब्द आए हैं-राजगृह,. जवणिया (यवनिका-परदा), अट्ठारस सेणीप्पसेणीओ, याग, गणनायक, बहत्तर १. (अ) अभयदेवकृत वृत्तिसहित-आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९१६: आगम-संग्रह, कलकत्ता, सन् १८७६; सिद्धचक्र साहित्य प्रचारक समिति, बम्बई, सन् १९५१-१९५२. (आ) गुजराती छायानुवाद-पूंजाभाई जैन ग्रन्थमाला, अहमदाबाद, सन् १९३१. (इ) हिन्दी अनुवाद-मुनि प्यारचंद, जैनोदय पुस्तक प्रकाशक समिति, ___ रतलाम, वि. सं. १९९५. (ई) संस्कृत व्याख्या व उसके हिन्दी-गुजराती अनुवाद के साथ-मुनि घासीलाल, जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, सन् १९६३. (उ) हिन्दी अनुवादसहित-अमोलक ऋषि हैदराबाद, वी. सं. २४४६. (ऊ) गुजराती अनुवादसहित (अध्ययन १-८)-जेठालाल, जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर, वि. सं.० १९८५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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