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________________ २४८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस उद्देशक में दस प्रकार की सामाचारी तथा दस प्रकार के प्रायश्चित्तों के भी नाम गिनाये गये हैं । इसके अतिरिक्त जैन परिभाषा में प्रचलित अन्य अनेक तथ्यों का इसमें निरूपण हुआ है। छब्बीसवें शतक में भी इसी प्रकार के कुछ पदों द्वारा जीवों के बद्धत्व के विषय में चर्चा की गई है। इस शतक का नाम बंधशतक है । सत्ताईसवें शतक में पापकर्म के विषय में चर्चा है । इस शतक का नाम करि शतक है । इसमें ग्यारह उद्देशक हैं । अट्ठाईसवें शतक में कर्मोपार्जन के विषय में विचार किया गया है । इस शतक का नाम कर्मसमर्जन है । उनतीसवें शतक में कर्मयोग के प्रारंभ एवं अन्त का विचार है । इस शतक का नाम कर्मप्रस्थापन है । तीसवें शतक में क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी एवं विनयवादी की अपेक्षा से समस्त जीवों का विचार किया गया है। जो जीव शुक्ललेश्या वाले हैं वे चार प्रकार के हैं । लेश्यारहित जीव केवल क्रियावादी हैं । कृष्णलेश्या वाले जीव क्रियावादी के अतिरिक्त तीनों प्रकार के हैं । नारकी चारों प्रकार के हैं । पृथ्वीकायिक केवल अक्रियावादी एवं अज्ञानवादी हैं । इसी प्रकार समस्त एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय एवं चतुरिन्द्रिय के विषय में समझना चाहिए । मनुष्य एवं देव चार प्रकार के हैं । ये चारों वादी भवसिद्धिक हैं अथवा अभवसिद्धिक, इसकी भी चर्चा की गई है। इस शतक में ग्यारह उद्देशक हैं । इसका नाम समवसरण शतक है । इकतीसवें शतक में फिर युग्म की चर्चा है । यह अन्य ढङ्ग से है । इस शतक का नाम उपपात शतक है । इसमें २८ उद्देशक हैं । बत्तीसवें शतक में भी इसी प्रकार की चर्चा । यह चर्चा उद्वर्तना सम्बन्धी है । इसीलिए इस शतक का नाम उद्वर्तना शतक है । इसमें भी २८ उद्देशक हैं । तैंतीस शतक में एकेन्द्रिय जीवों के विषय में विविध प्रकार को चर्चा है । इस शतक में उद्देशक नहीं अपितु अन्य बारह शतक ( उपशतक ) हैं । यह इस शतक की विशेषता है । चौंतीसवें शतक में भी इसी प्रकार की चर्चा एवं अवान्तर शतक हैं । पैंतासवें शतक में कृतयुग्म आदि को विभिन्न भंगपूर्वक चर्चा की गई है । यह चर्चा एकेन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में है । छत्तीसवें शतक में इसी प्रकार की चर्चा द्वीन्द्रिय जीवों के विषय में है । इसी प्रकार सैंतीसवें, अड़तीसवें, उनचालीसवें एवं चालीसवें शतक में क्रमश: त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञो पंचेन्द्रिय एवं संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवों के विषय में चर्चा है । www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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