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________________ व्याख्याप्रज्ञप्ति कोणिक का प्रधान हाथी : सत्रहवें शतक के प्रथम उद्देशक के प्रारंभ में राजा कोणिक के मुख्य हाथी के विषय में चर्चा है । इस चर्चा में मूल प्रश्न यह है कि यह हाथी पूर्वभव में कहाँ था और मरकर कहाँ जायगा ? उत्तर में बताया गया है कि यह हाथी पूर्वभव में असुरदेव था और मरकर नरक में जायगा तथा वहां से महाविदेह वर्ष में जाकर निर्वाण प्राप्त करेगा । राजा कोणिक का प्रधान हाथी कितना भाग्यशाली है कि उसकी चर्चा भगवान् महावीर के मुख से हुई है ? प्रकार के अन्य हाथी भूतानंद की चर्चा है । इसके बाद इसकी चर्चा है कि ताड़ के वृक्ष पर चढ़कर उसे हिलाने वाले एवं फलों को नीचे गिराने वाले को कितनी क्रियाएँ लगती है । इसके बाद भी इसी प्रकार की चर्चा है जो सामान्य वृक्ष से सम्बन्धित है । इसके बाद इन्द्रिय, योग, शरीर आदि के विषय में चर्चा है । इसके बाद इसी कम्प : तृतीय उद्देशक में शैलेशी अर्थात् शिलेश - मेरु के समान अकंप स्थिति को प्राप्त अनगार कैसा होता है, इसकी चर्चा है । इस प्रसंग पर कंप के पाँच प्रकार बताये गये हैं : द्रव्यकंप, क्षेत्रकंप, कालकंप, भावकंप और भयकंप । इसके बाद 'चलना' की चर्चा है । अन्त में यह बताया गया है कि संवेग, निर्वेद, शुश्रूषा, आलोचना, अप्रतिबद्धता, कषायप्रत्याख्यान आदि निर्वाण फल को उत्पन्न करते हैं । नरकस्थ एवं स्वर्गस्थ पृथ्वीकायिक आदि जीव : छठे उद्देशक में नरकस्थ पृथ्वीकायिक जीव की सौधर्म आदि देवलोक में उत्पत्ति होने के विषय में चर्चा है। सातवें में स्वर्गस्थ पृथ्वीकायिक जीव की नरक में उत्पत्ति होने के विषय में विचारणा है । आठवें व नवें में इसी प्रकार की चर्चा अपकायिक जीव के विषय में है । इससे मालूम पड़ता है कि स्वर्ग व नरक में भी पानी होता है । २४३ प्रथमता - अप्रथमता : अठारहवें शतक में निम्नलिखित दस उद्देशक हैं : १. प्रथम, २. विशाख, ३. माकंदी, ४. प्राणातिपात, ५ असुर, ६ फणित, ७. केवली ८ अनगार, ९. भवद्रव्य, १०. सोमिल । प्रथम उद्देशक में जीव के जीवत्व की प्रथमताअप्रथमता की चर्चा है । इसी प्रकार जीव के सिद्धत्व आदि का विचार किया गया है । कार्तिक सेठ : दूसरे उद्देशक में बताया गया है कि विशाखा नगरी के बहुपुत्रिक चैत्य में भगवान् महावीर आते हैं । वहीं उन्हें यह पूछा जाता है कि देवेन्द्र - देवराज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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