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________________ २४२ जैन साहित्य का ब्हद् इतिहास पुद्गलों को ग्रहण किये बिना आने-जाने, बोलने, आँख खोलने, आँख बंद करने, अंगोंको संकुचित करने व फैलाने तथा विषयभोग करने में समर्थ नहीं। बाह्य पुद्गलों को ग्रहण कर ही वह ये सब कार्य कर सकता है। इसके बाद महाशुक्रकल्प नामक स्वर्ग में रहने वाले दो देवों के विवाद का वर्णन है : एक देव सम्यग्दृष्टि है और दूसरा मिथ्यादृष्टि । इस विवाद में सम्यग्दृष्टि अर्थात् जैन देव ने मिथ्या दृष्टि अर्थात् अजैन देव को पराजित किया। विवाद का विषय पुद्गल परिणाम कहा गया है। इससे मालूम होता है कि स्वर्गवासी देव भी पुद्गल-परिणाम आदि की चर्चा करते हैं। सम्यगदृष्टि देव का नाम गंगदत्त बताया गया है। यह उसके पूर्व जन्म का नाम है । देव होने के बाद भी पूर्व जन्म का ही नाम चलता है, ऐसी जैन परम्परा की मान्यता है। प्रस्तुत प्रकरण में गंगदत्त देव का पूर्व जन्म मानते हुए कहा गया है कि वह हस्तिनापुर निवासी एक गृहपति था एवं तीर्थंकर मुनिसुव्रत के पास दीक्षित हुआ था। स्वप्न : छठे उद्देशक में स्वप्न सम्बन्धी चर्चा है। भगवान् कहते हैं कि एक स्वप्न यथार्थ होता है अर्थात् जैसा स्वप्न देखा हो वैसा ही फल मिलता है । दूसरा स्वप्न अति विस्तारयुक्त होता है यह यथार्थ होता भी है और नहीं भी। तीसरा चिन्तास्वप्न होता है अर्थात् जाग्रत अवस्था की चिन्ता स्वप्नरूप में प्रकट होती है। चौथा विपरीतस्वप्न होता है अर्थात् जैसा स्वप्न देखा हो उससे विपरीत फल मिलता है। पांचवां अव्यक्तस्वप्न होता है अर्थात् स्वप्नदर्शन में अस्पष्टता होती है। आगे बताया गया है कि पूरा सोया हुआ अथवा जगता हुआ व्यक्ति स्वप्न नहीं देख सकता अपितु कुछ सोया हुआ व कुछ जगता हुआ व्यक्ति ही स्वप्न देख सकता है । संवृत, असंवृत्त व संवृतासंवृत ये तीनों ही जोव स्वप्न देखते हैं । इनमें से संवृत का स्वप्न यथार्थ ही होता है। असंवृत व संवृतास वृत का स्वप्न यथार्थ भी हो सकता है और अयथार्थ भी। साधारण स्वप्न ४२ प्रकार के हैं और महास्वप्न ३० प्रकार के हैं। इस प्रकार कुल ७२ प्रकार के स्वप्न होते हैं । जब तीर्थंकर का जीव माता के गर्भ में आता है तब वह चौहद महास्वप्न देखकर जागती है। इसी प्रकार चक्रवर्ती की माता के विषय में भी समझना चाहिए । वासुदेव की माता सात, बलदेव की माता चार और माण्डलिक राजा की माता एक स्वप्न देखकर जागती है। श्रमण भगवान् महावीर ने छद्मस्थ अवस्था में एक रात्रि के अन्तिम प्रहर में दस महास्वप्न देखे थे। प्रस्तुत उद्देशक में यह भी बताया गया है कि स्त्री अथवा पुरुष अमुक स्वप्न देखे तो उसे अमुक फल मिलता है । इस चर्चा से यह मालूम होता है कि जैन अगंशास्त्रों में स्वप्न विद्या को भी अच्छा स्थान मिला है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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