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________________ २४४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास शक्र पूर्वभव में कोन था ? उसे शक्र पद कैसे प्राप्त हुआ ? इसके उत्तर में हस्तिनापुर निवासी सेठ कार्तिक का सम्पूर्ण जीवनवृत्तान्त बताया गया है । उसने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का पालन कर दीक्षा स्वीकार कर मृत्यु के बाद शक्रपद – इन्द्रपद पाया । यह घटना मुनिसुव्रत तीर्थकर के समय की है । माकंदी अनगार : तीसरे उद्देशक में भगवान् के शिष्य सरलस्वभावी मार्कदिकपुत्र अथवा माकंदी अनगार द्वारा पूछे गये कुछ प्रश्नों के उत्तर हैं । माकंदी अनगार ने अपना अमुक विचार अन्य जैन श्रमणों के सन्मुख रखा जिसे उन लोगों ने अस्वीकार किया। इस पर भगवान् महावीर ने उन्हें बताया कि माकंदी अनगार का विचार बिल्कुल ठीक है । युग्म : चौथे उद्देशक में गौतम ने युग्म की चर्चा की है । युग्म चार हैं : कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापर और कल्योज । युग्म व युग में अर्थ की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं है । वैदिक परम्परा में कृतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग व कलयुग – ये चार युग प्रसिद्ध हैं । उपर्युक्त चारयुग्मों की कल्पना का आधार यही चार युग मालूम होते हैं । जिस राशि में से चार-चार निकालते हुए अन्त में चार बाकी रहें वह राशि कृतयुग्म कहलाती है । जिस राशि में से चार-चार निकालते हुए अन्त में तीन बच रहें उस राशि को त्र्योज कहते हैं । जिस राशि में से चार-चार निकालते हुए दो बाकी रहें उसे द्वापर एवं एक बाकी रहे उसे कल्योज कहते हैं । पुद्गल : छठे उद्देशक में फणिक अर्थात् प्रवाहित ( पतला ) गुड़, भ्रमर, तोता, मजीठ, हल्दी, शंख, कुष्ठ, मयद, नीम, सोंठ, कोट, इमली, शक्कर, वज्र, मक्खन, लोहा, पत्र, बर्फ, अग्नि, तेल आदि के वर्ण, रस, गंध और स्पर्श की चर्चा है | ये सब व्यावहारिक नय की अपेक्षा से मधुरता अथवा कटुता आदि से युक्त हैं किन्तु नैश्चयिक नय की दृष्टि से पांचों वर्णों, पांचों रसों, दोनों गंधों एवं आठों स्पर्शो से युक्त हैं । परमाणु-पुद्गल में एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श हैं । इसी प्रकार द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक, चतुष्प्रदेशिक, पंचप्रदेशिक आदि पुद्गलों के विषय में चर्चा है । मद्रुक श्रमणोपासक : सातवें उद्देशक में बताया गया है कि राजगृह नगर के गुणशिलक चैत्य के आसपास कालोदायी, शैलोदायी, आदि अन्यतीर्थिक रहते थे । इन्होंने मद्रुक नामक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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