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________________ २२८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रश्न-पृथ्वीकाय यावत् वनस्पतिकाय के जीव कितने समय में श्वास लेते हैं। उत्तर-विविध समय में अर्थात् विविध रीति से श्वास लेते हैं। प्रश्न-क्या ये सब जीव आहार लेते हैं ? उत्तर-हाँ ये सभी जीव आहार लेते हैं । प्रश्न-ये सब जीव कितने समय में आहार ग्रहण करते हैं ? उत्तर-ये सब जीव निरन्तर आहार ग्रहण करते हैं । ये जीव जिन पुद्गलों का आहार करते हैं वे काले, नीले, पीले, लाल एवं सफेद होते हैं । ये सब सुगन्धी भी होते हैं और दुर्गन्धी भी । स्वाद में सब प्रकार के स्वादों से युक्त होते हैं एवं स्पर्श में सब प्रकार के स्पर्श वाले होते हैं । इसी प्रकार के प्रश्न द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय एवं चतुरिन्द्रिय सम्बन्धी भी हैं। प्रश्न-जीव आत्मारंभी है, परारंभी हैं, उभयारंभी हैं अथवा अनारंभी हैं ? उत्तर-कुछ जीव आत्मारम्भी भी हैं, परारंभी भी है उभयारंभी भी हैं तथा कुछ जीव आत्मारंभी भी नहीं हैं, परारंभी भी नहीं हैं और उभयारंभी भी नहीं हैं किन्तु केवल अनारम्भी हैं । यहाँ आरम्भ का अर्थ आस्रवद्वार सम्बन्धी प्रवृत्ति है। यतनारहित आचरण करने वाले समस्त जीव आरम्भी ही है। यतनासहित एवं शस्त्रोक्त विधान के अनुसार आचरण करने वाले जीव भी वैसे तो आरम्भी हैं किन्तु यतना की अपेक्षा से अनारम्भी है । सिद्ध आत्माएँ अशरीरी होने के कारण अनारम्भी ही हैं । प्रश्न-क्या असंयत अथवा अविरत जीव भी मृत्यु के बाद देव होते हैं ? उत्तत- हाँ, होते हैं। प्रश्न-यह कैसे ? उत्तर-जिन्होंने भूख, प्यास, डांस, मच्छर आदि के उपसर्ग अनिच्छा से भी सहे हैं वे वाणव्यन्तर नामक देवों की गति प्राप्त करते हैं। जिन्होंने ब्रह्मचर्य का अनिच्छा से भी पालन किया है इस प्रकार की कुलीन बालविधवाएं अथवा अश्व आदि प्राणी देवगति प्राप्त करते हैं । जिन्होंने अनिच्छापूर्वक भी शीत, ताप आदि सहन किया है वे भी देवगति प्राप्त करते हैं । प्रथम शतक के द्वितीय उदेशक के प्रारम्भ में इस प्रकार का उपोद्घात है कि भगवान् महावीर राजगृह में आये तथा देशना दी। इसके बाद स्वकृत कर्म के वेदन की चर्चा है । जीव जिस किसी सुख अथवा दुःख का अनुभव करता है वह सब स्वकृत ही होता है, परकृत नहीं। इस कथन से ईश्वरादिकर्तृत्व का निरसन होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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