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व्याख्याप्रज्ञप्ति
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भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्यों की चर्चा भी आती है । उन्हें पावपित्य कहा गया है । इसमें श्रावकों द्वारा की गई चर्चा भी आती है । श्राविका के रूप में तो एकमात्र जयंती श्राविका की ही चर्चा दिखाई देती है । इस सूत्र में भगवान् महावीर के समकालीन मंखलिपुत्र गोशाल के विषय में विस्तृत विवेचन है । गोशाल के कुछ सहायकों को 'पासत्य' शब्द से निर्दिष्ट किया गया है । चूर्णिकार ने इन्हें पार्श्वनाथ के अनुयायी कहा है ।
प्रश्नकार गौतम :
सूत्र के प्रारम्भ में जहाँ प्रश्नों की शुरुआत होती है वहाँ वृत्तिकार के मन में यह प्रश्न उठता है कि प्रश्नकार गौतम स्वयं द्वादशांगी के विधाता हैं, श्रुत के समस्त विषयों के ज्ञाता हैं तथा सब प्रकार के संशयों से रहित हैं । इतना ही नहीं, ये सर्वज्ञ के समान हैं तथा मति, श्रुत, अवधि एवं मनःपर्याय ज्ञान के धारक है । ऐसी स्थिति में उनका संशययुक्त सामान्य जन की भांति प्रश्न पूछना कहाँ तक युक्तिसंगत है ? इसका उत्तर वृत्तिकार इस प्रकार देते हैं।
१. गौतम कितने ही अतिशययुक्त क्यों न हों, उनसे भूल होना असंभव नहीं क्योंकि आखिर वे हैं तो छद्मस्थ हो ।
२. खुद जानते हुए भी अपने ज्ञान की अविसंवादिता के लिए प्रश्न पूछ सकते हैं ।
३. खुद जानते हुए भी अन्य अज्ञानियों के बोध के लिए पूछ सकते हैं । ४. शिष्यों को अपने वचन में विश्वास बैठाने के लिए पूछ सकते हैं । ५. सूत्ररचना की यही पद्धति है - शास्त्ररचना का इसी प्रकार का आचार है । इन पाँच हेतुओं में से अन्तिम हेतु विशेष युक्तियुक्त मालूम होता है ।
प्रश्नोत्तर :
प्रथम शतक में कुछ प्रश्न व उनके उत्तर इस प्रकार है
-:
प्रश्न - क्या पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं वनस्पति जीवरूप हैं ? इन जीवों की आयु कितनी होती हैं ?
उत्तर - पृथ्वी कायरूप आदि जीव हैं और उनमें से पृथ्वीकायरूप जीवों की आयु कम से कम अन्तर्मुहूर्त व अधिक से अधिक बाईस हजार वर्ष की होती है । जलकाय के जीवों की आयु अधिक से अधिक सात हजार वर्ष, अग्निकाय के जीवों की आयु अधिक से अधिक तीन अहोरात्रि, वायुकाय के जीवों की आयु अधिक से अधिक तीन हजार वर्षं एवं वनस्पतिकाय के जीवों की आयु अधिक से अधिक दस हजार वर्ष की होती है । इन सबकी कम
से
कम आयु अन्तर्मुहूर्त है ।
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