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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वर्तमान में अनुपलब्ध हैं । इसी प्रकार इसमें अंतकृद्दशा एवं अनुत्तरौपपातिक नामक अंगों के ऐसे प्रकरणों का भी उल्लेख है जो इन ग्रन्थों के उपलब्ध संस्करण में अनुपलब्ध हैं । मालूम होता है या तो नामों में कुछ परिवर्तन हो गया है या वाचना में अन्तर हुआ है। गर्भधारण :
स्थानांग, सू. ४१६ में बताया गया है कि पुरुष के संसर्ग के बिना भी निम्नोक्त पाँच कारणों से स्त्री गर्भ धारण कर सकती है : (१) जिस स्थान पर पुरुष का वीर्य पड़ा हो उस स्थान पर स्त्री इस ढंग से बैठे कि उसकी योनि में वीर्य प्रविष्ट हो जाय. (२) वीर्यसंसक्त वस्त्रादि द्वारा वीर्य के अणु स्त्री की योनि में प्रविष्ट हो जायँ, (३) पुत्र की आकांक्षा से नारी स्वयं वीर्याणुओं को अपनी योनि में रखे अथवा अन्य से रखवावे, (४) वीर्याणुयुक्त पानी पीये, (५) वीर्याणयुक्त पानी में स्नान करे। भूकम्प : ___ स्थानांग सू. १९८ में भूकम्प के तीन कारण बताये गये हैं : (१) पृथ्वी के नीचे के घनवात के व्याकुल होने पर घनोदधि में तूफान आने पर, (२) किसी महासमर्थ महोरग देव' द्वारा अपना सामर्थ्य दिखाने के लिए पृथ्वी को चालित करने पर, (३) नागों एवं सुपर्णो-गरुड़ों में संग्राम होने पर। नदियाँ :
स्थानांग, सू. ८८ में भरतक्षेत्र में बहनेवाली दो महानदियों के नामों का उल्लेख है : गंगा और सिंधु । यहाँ यह याद रखना चाहिए कि गंगा नाम आर्यभाषाभाषियों के उच्चारण का है। इसका वास्तविक नाम तो 'खोंग' है। 'खोंग' शब्द तिब्बती भाषा का है जिसका अर्थ होता है नदी । इस शब्द का भारतीय उच्चारण गंगा है। यह शब्द अति लम्बे काल से अपने मूल अर्थ को छोड़ कर विशेष नदी के नाम के रूप में प्रचलित हो गया है। सू० ४१२ में गंगा, यमुना, सरयू, ऐरावती और मही-ये पांच नदियां महार्णवरूप अर्थात् समुद्र के समान कही गई हैं । इन्हें जैन श्रमणों व श्रमणियों को महीने में दो-तीन बार पार करने के लिए कहा गया है। राजधानियाँ:
स्थानांग सू० ७१८ में भरतक्षेत्र की निम्नोक्त दस राजधानियों के नाम गिनाये गये हैं : चंपा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ती, साकेत, हस्तिनापुर,
१. एक प्रकार का व्यन्तर देव. २. भवनपति देवों की दो जातियाँ.
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