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________________ स्थानांग व समवायांग २१९. बतलाये गये हैं : १. पुरतः प्रतिबद्धा, २ मार्गतः प्रतिबद्धा, ३. उभयतः प्रतिबद्धा, ४. अप्रतिबद्धा । १. शिष्य व आहारादि की प्राप्ति के उद्देश्य से ली जानेवाली प्रव्रज्या पुरतः प्रतिबद्धा प्रव्रज्या है । २. प्रव्रज्या लेने के बाद स्वजनों में विशेष प्रतिबद्ध होना अर्थात् स्वजनों के लिए भौतिक सामग्री प्राप्त करने की भावना रखना मार्गतः प्रतिबद्धा प्रव्रज्या है । ३. उक्त दोनों प्रकार की प्रव्रज्याओं का सम्मिश्रित रूप उभयतः प्रतिबद्धा प्रव्रज्या है । ४. आत्मशुद्धि के लिए ग्रहण की जाने वाली प्रव्रज्या अप्रतिबद्धा प्रव्रज्या है । प्रकारान्तर से प्रव्रज्या के चार भेद इस प्रकार बताये गये हैं : १. तुयावइत्ता प्रव्रज्या अर्थात् किसी को पीड़ा पहुँचाकर अथवा मंत्रादि द्वारा प्रव्रज्या की ओर मोड़ना एवं प्रव्रज्या देना । २. पुयावइत्ता प्रव्रज्या अर्थात् किसी को भगाकर प्रव्रज्या देना । आर्यरक्षित को इसी प्रकार प्रव्रज्या दो गई थी । ३. बुयावइत्ता प्रव्रज्या अर्थात् अच्छी तरह संभाषण करके प्रव्रज्या की ओर झुकाव पैदा करना एवं प्रव्रज्या देना अथवा मोयावइत्ता प्रव्रज्या अर्थात् किसी को मुक्त कर अथवा मुक्त करने का लोभ देकर अथवा मुक्त करवाकर प्रव्रज्या की ओर झुकाना एवं प्रव्रज्या देना । ४. परिपुयावइत्ता प्रव्रज्या अर्थात् किसी को भोजन सामग्री आदि का प्रलोभन देकर अर्थात् उसमें भोजनादि की पर्याप्तता का आकर्षण उत्पन्न कर प्रव्रज्या देना | सू० ७१२ में प्रव्रज्या के दस प्रकार बताये गये हैं : १. छंदप्रव्रज्या, २. रोषप्रव्रज्या ३ परिद्यूनप्रव्रज्या ४, स्वप्नप्रव्रज्या, ५ प्रतिश्रुतप्रव्रज्या, ६ . स्मारणिकाप्रव्रज्या, ७, रोगिणिकाप्रव्रज्या, ८. अनादृतप्रव्रज्या, ९. देवसंज्ञप्ति - प्रव्रज्या, १०. वत्सानुबंधिताप्रव्रज्या । १. स्वेच्छापूर्वक ली जाने वाली प्रव्रज्या छन्दप्रव्रज्या है । २. रोष के कारण ली जानेवाली प्रव्रज्या रोषप्रव्रज्या है । ३. दीनता अथवा दरिद्रता के कारण ग्रहण की जानेवाली प्रव्रज्या परिद्युम्नप्रव्रज्या है । ४. स्वप्न द्वारा सूचना प्राप्त होने पर ली जाने वाली प्रव्रज्या को स्वप्नप्रव्रज्या कहते हैं । ५. किसी प्रकार की प्रतिज्ञा अथवा वचन के कारण ग्रहण की जाने वाली प्रव्रज्या का नाम प्रतिश्रुतप्रव्रज्या है । ६. किसी प्रकार की स्मृति के कारण ग्रहण की जाने वाली प्रव्रज्या स्मारिकाप्रव्रज्या है । ७. रोगों के निमित्त से ली जाने वाली प्रव्रज्या रोगिणिकाप्रव्रज्या है । ८. अनादर के कारण ली जाने वाली प्रव्रज्या अनादृतप्रव्रज्या कहलाती है । ९. देव के प्रतिबोध द्वारा ली जाने वालो प्रव्रज्या का नाम देवसंज्ञप्तिप्रव्रज्या है । १०. पुत्र के प्रव्रजित होने के कारण माता-पिता द्वारा ग्रहण की जाने वाली प्रव्रज्या को वत्सानुबंधिताप्रव्रज्या कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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