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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
चाहिए । सिद्धकेवलज्ञान भी दो प्रकार का है : अन्तरसिद्धकेवलज्ञान व परम्परसिद्धकेवलज्ञान । इन दोनों के पुनः दो-दो भेद किये गये हैं । ___ इसी अंग के सू० ७५ में बताया गया है कि जिन जीवों के स्पर्शन और रसना ये दो इंद्रियां होती हैं उनका शरीर अस्थि, मांस व रक्त से निर्मित होता है । इसी प्रकार जिन जीवों के स्पर्शन, रसना, घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ अथवा स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियाँ होती हैं उनका शरीर भी अस्थि, मांस व रक्त से बना होता है। जिनके श्रोत्र सहित पाँच इन्द्रियाँ होती हैं उनका शरीर अस्थि, मांस, रक्त, स्नायु व शिरा से निर्मित होता है । सूत्रकार के इस कथन की जाँच प्राणिविज्ञान के आधार पर की जा सकती है।
सू० ४४६ में रजोहरण के पाँच प्रकार बताये गये हैं : १. ऊन का रजोहरण, २. ऊँट के बाल का रजोहरण, ३. सन का रजोहरण, ४. बल्वज ( तृणविशेष) का रजोहरण, ५. मूंज का रजोहरण । वर्तमान में केवल प्रथम प्रकार का रजोहरण ही काम में लाया जाता है ।
इसी सूत्र में निर्ग्रन्थों व निग्रंन्थियों के लिए पांच प्रकार के वस्त्र के उपयोग का निर्देश किया गया है : १. जांगमिक-ऊन का, २ भांगिक--अलसी का, ३. शाणक-सन का, ४. पोत्तिअ--सूत का, ५. तिरीडवट्ट-वृक्ष की छाल का । वृत्तिकार ने इन वस्त्रों का विशेष विवेचन किया है एवं बताया है कि निग्रन्थनिग्रंन्थियों के लिए उत्सर्ग की दृष्टि से कपास व ऊन के ही वस्त्र ग्राह्य हैं और वे भी बहुमूल्य नहीं अपितु अल्पमूल्य । बहुमूल्य का स्पष्टीकरण करते हुए वृत्तिकार ने लिखा है कि पाटलिपुत्र में प्रचलित-मुद्रा के अठारह रुपये से अधिक मूल्य का वस्त्र बहुमूल्य समझना चाहिए । प्रव्रज्या :
सू० ३५५ में प्रत्नज्या के विविध प्रकार बताये गये हैं जिन्हें देखने से प्राचीन समय के प्रव्रज्यादाताओं एवं प्रव्रज्याग्रहणकर्ताओं की परिस्थिति का कुछ पता लग सकता है। इसमें प्रव्रज्या चार प्रकार की बताई गई है। १. इहलोकप्रतिबद्धा, २. परलोकप्रतिबद्धा, ३. उभयलोकप्रतिबद्धा, ४. अप्रतिबद्धा । १. केवल जीवन निर्वाह के लिए प्रवज्या ग्रहण करना इहलोकप्रतिबद्धा प्रव्रज्या है। २. जन्मान्तर में कामादि सखों की प्राप्ति के लिए प्रव्रज्या लेना परलोकप्रतिबद्धा प्रव्रज्या है। ३. उक्त दोनों उद्देश्यों को ध्यान में रखकर प्रव्रज्या ग्रहण करना उभयलोकप्रतिबद्धा प्रव्रज्या है । ४. आत्मोन्नति के लिए प्रव्रज्या स्वीकार करना अप्रतिबद्धा प्रव्रज्या है । अन्य प्रकार से प्रव्रज्या के चार भेद के
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