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________________ २०७ सूत्रकृतांग अन्तिम कुछ गाथाओं में अनगार को अमुक प्रकार की भाषा न बोलने का उपदेश दिया गया है । आर्द्रकुमार " आर्द्रकीय नामक छठा अध्ययन भी पूरा पद्यमय है । इसमें कुल ५५ गाथाएं हैं । अध्ययन के प्रारम्भ में ही 'पुराकडं अद्द ! इमं सुणेह' अर्थात् 'हे आर्द्र इस पूर्वकृत को सुन' इस प्रकार आर्द्र को संबोधित किया गया है । इससे यह प्रकट होता है कि इस अध्ययन में चर्चित वाद-विवाद का सम्बन्ध 'आर्द्र' के साथ है। नियुक्तिकार ने इस आर्द्र को आर्द्रनामक नगर का राजकुमार बताया है । यह राजा श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार का मित्र था । अनुश्रुति यह है कि आर्द्रपुर अनार्यदेश में था । कुछ लोगों ने सो 'अद्द - आद्र' शब्द की तुलना 'अडन' के साथ भी की है। आर्द्रपुर के राजा और मगधराज श्रेणिक के बीच स्नेहसम्बन्ध था । इसलिए अभयकुमार से भी आर्द्रकुमार का परिचय हुआ । नियुक्तिकार ने लिखा है कि अभयकुमार ने अपने मित्र आर्द्रकुमार के लिए जिन भगवान् की प्रतिमा भेंट भेजी थी। इससे उसे बोध हुआ और वह अभयकुमार से मिलने के लिए उत्सुक हुआ । पूर्वजन्म का ज्ञान होने के कारण आर्द्रकुमार का मन कामभोगों से विरक्त हो गया और उसने अपने देश से भागकर स्वयमेव प्रव्रज्या ग्रहण कर ली । संयोगवशात् उसे एक बार साधुवेश छोड़कर गृहस्थधर्म में प्रविष्ट होना पड़ा । पुनः साधुवेश स्वीकार कर वह जहाँ भगवान् महावीर उपदेश दे रहे थे, वहाँ जाने के लिए निकला। मार्ग में उसे गोशालक के अनुयायी भिक्षु, बौद्धभिक्षु, ब्रह्मव्रती ( त्रिदण्डी ), हस्तितापस आदि मिले । आर्द्रकुमार व इन भिक्षुओं के बीच जो वाद-विवाद हुआ वही प्रस्तुत अध्ययन में वर्णित है । : भगवान् महावीर की और भी आक्षेप इन भिक्षुओं ने इस अध्ययन की प्रारंभिक पचीस गाथाओं में आर्द्रकुमार का गोशालक के भिक्षुओं के साथ वाद-विवाद है । इसमें इन भिक्षुओं ने बुराई की है और बताया है कि यह महावीर पहले तो त्यागी था, एकान्त में रहता था, प्रायः मौन रखता था किन्तु अब आराम में रहता है, सभा में बैठता है, मौन का सेवन नहीं करता । इस प्रकार के भगवान् महावीर पर लगाये हैं । आर्द्रमुनि ने इन तमाम आक्षेपों का उत्तर दिया है । इस वाद-विवाद के मूल में कहीं भी गोशालक का नाम नहीं है । नियुक्तिकार एवं वृत्तिकार ने इसका सम्बन्ध गोशालक के साथ जोड़ा है । इस वाद-विवाद को पढ़ने से यह मालूम पड़ता है कि पूर्वपक्षी महावीर का पूरी तरह से परिचित व्यक्ति होना चाहिए । यह व्यक्ति गोशालक के सिवाय दूसरा कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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