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________________ सूत्रकृतांग २०१ ही कहने लगा-हे उत्तम कमल ! मेरे पास उड़ आ, मेरे पास उड़ आ । यों कहते हो वह कमल वहाँ से उठकर भिक्षु के पास आ गया। ____ इस रूपक का परमार्थ-सार बताते हुए सूत्रकार कहते हैं कि यह संसार पुष्करिणी के समान है। इसमें कर्मरूप पानी एवं कामभोगरूप कीचड़ भरा हुआ है । अनेक जनपद चारों ओर फैले हा कमल के समान हैं। मध्य में रहा हुआ पुण्डरीक राजा के समान है । पुष्करिणी में प्रविष्ट होने वाले चारों पुरुष अन्य तीथिकों के समान है। कुशल भिक्षु धर्मरूप है, किनारा धर्मतीर्थरूप है, भिक्षु द्वारा उच्चारित शब्द धर्मकथारूप है एवं पुण्डरीक कमल का उड़ना निर्वाण के समान है। उपयुक्त चार पुरुषों में से प्रथम पुरुष तज्जीवतच्छरीरवादी है। उसके मत से शरीर और जीव एक हैं-अभिन्न हैं। यह अनात्मवाद है । इसका दूसरा नाम नास्तिकवाद भी है। प्रस्तुत अध्ययन में इस वाद का वर्णन है । यह वर्णन दीघनिकाय के सामञ्जफलसुत्त में आने वाले भगवान् बुद्ध के समकालीन अजितकेशकंबल के उच्छेदवाद के वर्णन से हूबहू मिलता है । इतना ही नहीं, इनके शब्दों में भी समानता दृष्टिगोचर होती है । दूसरा पुरुष पंचभूतवादी है। उसके मत से पांच भूत ही यथार्थ हैं जिनसे जीव की उत्पत्ति होती है। तजीवतच्छरीरवाद एवं पंचभूतवाद में अन्तर यह है कि प्रथम के मत से शरीर और जीव एक ही है अर्थात् दोनों में कोई भेद ही नहीं है जबकि दूसरे के मत से जीव की उत्पत्ति पाँच महाभूतों के सम्मिश्रण से शरीर के बनने पर होती है एवं शरीर के नष्ट होने के साथ जीव का भी नाश हो जाता है। पंचभूतवादी की चर्चा में आत्मषष्ठवादो के मत का भी उल्लेख किया गया है । जो पाँच भूतों के अतिरिक्त छठे आत्मतत्त्व की भी सत्ता स्वीकार करता है वह आत्मषष्ठवादी है। वृत्तिकार ने इस वादी को सांख्य का नाम दिया है। तृतीय पुरुष ईश्वरकारणवादी है। उसके मत से यह लोक ईश्वरकृत है अर्थात संसार का कारण ईश्वर है। ___ चतुर्थ पुरुष नियतिवादी है। नियतिवाद का स्वरूप प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन के द्वितीय उद्देशक की प्रथम तीन गाथाओं में बताया गया है। उसके अनुसार जगत् की सारी क्रियाएं नियत हैं-अपरिवर्तनीय है। जो क्रिया जिस रूप में नियत है वह उसी रूप में पूरी होगी । उसमें कोई किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकता। अन्त में आने वाला भिक्षु इन चारों पुरुषों से भिन्न प्रकार का है । वह संसार को असार समझ कर भिक्षु बना है एवं धर्म का वास्तविक स्वरूप समझ कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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