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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
सात महाअध्ययन :
द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन हैं। नियुक्तिकार ने इन सात अध्ययनों को महाअध्ययन कहा है। वृत्तिकार ने इन्हें महाअध्ययन कहने का कारण बताते हुए लिखा है कि प्रथम श्रुतस्कन्ध में जो बातें संक्षेप में कही गई हैं वे ही इन अध्ययनों में विस्तार से बताई गई है अतएव इन्हें महाअध्ययन कहा गया है । इन सात अध्ययनों के नाम ये हैं : १. पुण्डरीक, २. क्रियास्थान, ३ आहारपरिज्ञा, ४. प्रत्याख्यानक्रिया, ५ आचारश्रुत अथवा अनगारश्रुत, ६ आर्द्रकीय, ७. नालंदीय । इनमें से आचारश्रुत व आद्रंकीय ये दो अध्ययन पद्यरूप हैं, शेष पाँच गद्यरूप । केवल आहारपरिज्ञा में चारेक पद्य आते हैं, बाकी का सारा अध्ययन गद्यरूप है।
पुण्डरीक :
जिस प्रकार प्रयम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन में भतवादी, तज्जीवतच्छरोर. बादी; आत्मषष्ठवादी, ईश्वरवादी, नियतिवादो आदिवादियों के मतों का उल्लेख है उसी प्रकार द्वितीय श्रुतस्कन्ध के पुण्डरीक नामक प्रथम अध्ययन में इन वादियों में से कुछ वादियों के मतों की चर्चा है। पुण्डरीक का अर्थ है सौ पंखुड़ियों वाला उत्तम श्वेत कमल । प्रस्तुत अध्ययन में पुण्डराक के रूपक की कल्पना की गई है एवं उस रूपक का भावार्थ समझाया गया है। रूपक इस प्रकार है : एक विशाल पुष्करिणी है । उसमें चारों ओर सुन्दर-सुन्दर कमल खिले हुए हैं। उसके ठीक मध्य में एक पुण्डरीक खिला हुआ है । वहाँ पूर्व दिशा से एक पुरुष आया और उसने इस पुण्डरीक को देखा । देखकर वह कहने लगा-मैं क्षेत्रज्ञ ( अथवा खेदज्ञ ) हूँ, कुशल हूँ, पंडित हूँ, व्यक्त हूँ, मेधावी हूँ, अबाल हूँ, मार्गस्थ हूँ, मार्गविद् हूँ एवं मार्ग पर पहुँचने के गतिपराक्रम का भी ज्ञाता हूँ। मैं इस उत्तम कमल को तोड़ सकूगा । यों कहते-कहते वह पुष्करिणी में उतरा एवं ज्यों-ज्यों आगे बढ़ने लगा त्यों-त्यों गहरा पानी एवं भारी कीचड़ आने लगा । परिणामतः वह किनारे से दूर कीचड़ में फँस गया और न इस ओर वापस आ सका, न उस ओर जा सका। इसी प्रकार पश्चिम, उत्तर व दक्षिण से आये हुए तीन और पुरुष उस कीचड़ में फँसे । इतने में एक संयमी नि:स्पृह एवं कुशल भिक्षु वहाँ आ पहुँचा । उसने उन चारों पुरुषों को पुष्करिणी में फसा हुआ देखा और सोचा कि ये लोग अकुशल, अपंडित एवं अमेधावी मालूम होते हैं । इस प्रकार कहीं कमल प्राप्त किया जा सकता है ? मैं इस कमल को प्राप्त
कूगा ।यों सोच कर वह पानी में न उतरते हुए किनारे पर खड़ा रह कर
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