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________________ सूत्रकृतांग निरूपण है। इसमें विशेष नाम अर्थात् व्यक्तिवाचक नाम के रूप में तीन बार 'महावीर' शब्द का तथा एक बार 'काश्यप' शब्द का उल्लेख है। यह 'काश्यप' शब्द भी भगवान् महाकीर का ही सूचक है। इसमें २५ गाथाएँ हैं। अन्य अध्ययनों की भांति इसमें भी चूणिसंमत एवं वृत्ति संमत वाचना में भेद है। गाथा: सोलहवें अध्ययन का नाम गाहा---गाथा है। यह प्रथम श्रुतस्कन्ध का अन्तिम अध्ययन है । गाथा का अर्थ बताते हुए नियुक्तिकार कहते हैं कि जिसका मधुरता से गान किया जा सके वह गाथा है । अथवा जिसमें बहुत अर्थसमुदाय एकत्र कर समाविष्ट किया गया हो वह गाथा है । अथवा पूर्वोक्त पंद्रह अध्ययनों को पिण्डरूप कर प्रस्तुत अध्ययन में समाविष्ट किया गया है इसलिए भी इसका नाम गाथा है। नियुक्तिकार ने ऊपर सामुद्र छंद का जो नाम दिया है उसका लक्षण छंदोनुशासन के छठे अध्याय में इस प्रकार बताया गया है : ओजे सप्त समे नव सामुद्रकम् । यह लक्षण प्रस्तुत अध्ययन पर लागू नहीं होता अतः इस विषय में विशेष शोध की आवश्यकता है। वृत्तिकार ने इस छंद के विषय में इतना ही लिखा है कि 'तच्चेदं छन्दः-अनिबद्धं च यत् लोके गाथा इति तत्पण्डितः प्रोक्तम्' अर्थात् जो अनि बद्ध है-छंदोबद्ध नहीं है उसे संसार में पंडितों ने 'गाथा' नाम दिया है । इससे मालूम होता है कि यह अध्ययन किसी प्रकार के पद्य में नहीं है फिर भी गाया जा सकता है अतएव इसका नाम गाथा रखा गया है। ब्राह्मण, श्रमण, भिक्षु व निग्रन्थ : ___ इस अध्ययन में बताया गया है कि जो समस्त पापकर्म से विरत है, रागद्वेष-कलह-अभ्याख्यान पैशुन्य-परनिन्दा-अरति रति-मायामृषावाद-मिथ्यादर्शनशल्य से रहित है, समितियुक्त है, ज्ञानादिगुण सहित है, सर्वदा प्रयत्नशील है, क्रोध नहीं करता, अहंकार नहीं रखता वह ब्राह्मण है। इसी प्रकार जो अनासक्त है, निदान रहित है, कषायमुक्त है, हिंसा-असत्य-बहिद्धा ( अब्रह्मचर्य-परिग्रह ) रहित है वह श्रमण है । जो अभिमानरहित है, विनयसम्पन्न है, परिग्रह एवं उपसर्गों पर विजय प्राप्त करने वाला है, आध्यात्मिक वृत्तियुक्त है, परदत्तभोजी है वह भिक्षु है । जो ग्रंथरहित है-परिग्रहादिरहित एकाकी है, एकविदु है- केवल आत्मा का ही जानकार है; पूजा-सत्कार का अर्थी नहीं है वह निग्रन्थ है। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन में ब्राह्मण, श्रमण, भिक्ष एवं निग्रन्थ का स्वरूप बताया गया है । यही समस्त अध्ययनों का सार है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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