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________________ सूत्रकृतांग १९५ ( शाखामार्ग ), वेत्रमार्ग. रज्जुमार्ग, दवनमार्ग ( वाहनमार्ग ), बिलमार्ग, पाशमार्ग, कीलकमार्ग, अजमार्ग, पक्षिमार्ग, छत्रमार्ग, जलमार्ग, आकाशमार्ग । ये सब बाह्यमार्ग हैं । प्रस्तुत अध्ययन में इन मार्गों के विषय में कुछ नहीं कहा गया है कि तु जिससे आत्मा को समाधि प्राप्त हो- शान्ति मिले उसी मार्ग का विवेचन किया गया है । ऐसा मार्ग ज्ञानमार्ग, दर्शनमार्ग, चारित्रमार्ग एवं तपोमार्ग कहलाता है । संक्षेप में उसका नाम संयममार्ग अथवा सदाचारमार्ग है । इस पूरे अध्ययन में आहारशुद्धि, सदाचार, संयम, प्राणातिपातविरमण आदि पर प्रकाश डाला गया है एवं कहा गया है कि प्राणों की परवाह किये बिना इन सबका पालन करना चाहिए। दानादि प्रवृत्तियों का भ्रमण को न तो समर्थन करना चाहिए और न निषेध; क्योंकि यदि वह कहता है कि इस प्रवृत्ति में धर्म है अथवा पुण्य है तो उसमें होने वाली हिंसा का समर्थन होता है जिससे प्राणियों की रक्षा नहीं हो सकती और यदि वह कहता है कि इस प्रवृत्ति में धर्म नहीं है अथवा पुण्य नहीं है तो जिसे सुख पहुँचाने के लिए वह प्रवृत्ति की जाती है उसे सुखप्राप्ति में अन्तराय पहुँचती है जिससे प्राणियों का कष्ट बढ़ता है । ऐसी स्थिति में श्रमण के लिए इस प्रकार की प्रवृत्तियों के प्रति उपेक्षाभाव अथवा मौन रखना ही श्रेष्ठ है । समवसरण : बारहवें अध्ययन का नाम समवसरण है । इस अध्ययन में २२ गाथाएँ हैं । चूर्णिसंमत वाचना एवं वृत्तिसंमत वाचना में पाठभेद है । देवादिकृत समवसरण अथवा समोसरण यहां विवक्षित नहीं है । उसका शब्दार्थ नियुक्तिकार ने सम्मेलन अथवा मिलन अर्थात् एकत्र होना किया है । चूर्णिकार तथा वृत्तिकार ने भी इस अर्थ का समर्थन किया है । यही अर्थ यहां अभीष्ट है । समवसरण नामक प्रस्तुत अध्ययन में विविध प्रकार के मतप्रवर्तकों अथवा मतों का सम्मेलन है । ये मतप्रवर्तक हैं -- क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी । क्रिया को माननेवाले क्रियावादी कहलाते हैं । ये आत्मा, कर्मफल आदि को मानते हैं । अक्रिया को मानने वाले अक्रियावादी कहलाते हैं । ये आत्मा, कर्मफल आदि का अस्तित्व नहीं मानते । अज्ञान को माननेवाले अज्ञानवादी कहलाते हैं । ये ज्ञान की उपयोगिता स्वीकार नहीं करते । विनय को माननेवाले विनयवादी कहलाते हैं । ये किसी भी मत को निन्दा नहीं करते अपितु समस्त प्राणियों का विनयपूर्वक आदर करते हैं । विनयवादी लोग गधे से लेकर गाय तक तथा चांडाल से लेकर ब्राह्मण तक सब स्थलचर, जलचर और खेचर प्राणियों को For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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