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________________ १९४ जेन साहित्य का बृहद् इतिहास ५. लोभ-भजन-भयण ... ६. क्रोध-स्थंडिल~थंडिल ७. मान-उच्छ्रयण-उस्सयण ये सब धूर्तादान अर्थात् धूर्तता के आयतन हैं । इनके अतिरिक्त धावन, रंजन, वमन, विरेचन, स्नान, दंतप्रक्षालन, हस्तकर्म आदि दूषित प्रवृत्तियों का उल्लेख करते हुए सूत्रकार ने आहार सम्बन्धी व अन्य प्रकार के कुछ दूषण भी गिनाये हैं । भिक्षुओं को इनका आचरण नहीं करना चाहिए, ऐसा निर्ग्रन्थ महामुनि महावीर ने कहा है । भाषा कैसो बोलनी चाहिए, इस पर भी सूत्रकार ने प्रकाश डाला है। समाधि : दसवें अध्ययन का नाम समाधि है । इस अध्ययन में २४ गाथाएँ हैं । समाधि का अर्थ है तुष्टि-संतोष-प्रमोद-आनन्द । नियुक्तिकार ने द्रव्यसमाधि, क्षेत्रसमाधि, कालसमाधि एवं भावसमाधि का स्वरूप बताया है। जिन गुणों द्वारा जीवन में समाधिलाभ हो वे भावसमाधि कहलाते हैं। यह भावसमाधि ज्ञानसमाधि, दर्शनसमाधि, चारित्रसमाधि एवं तपसमाधि रूप है । प्रस्तुत अध्ययन में इस भावसमाधि अर्थात् आत्म प्रसन्नता की प्रवृत्ति के सम्बन्ध में प्रकाश डाला गया है । संपूर्ण अध्ययन में किसी प्रकार का संचय म करना, समस्त प्राणियों के साथ आत्मवत् व्यवहार करना, सब प्रकार की प्रवृत्ति में हाथ-पैर आदि को संयम में रखना, किसी अदत्त वस्तु को ग्रहण न करना आदि सदाचार के नियमों के पालन के विषय में बार-बार कहा गया है । सूत्रकार ने पुन:-पुनः इस बात का समर्थन किया है कि स्त्रियों में आसक्त रहने वाले एवं परिग्रह में ममत्व रखने वाले श्रमण समाधि प्राप्त नहीं कर सकते । अतः समाधिप्राप्ति के लिए यह अनिवार्य है कि स्त्रियों में आसक्ति न रखी जाय, मैथुनक्रिया से दूर रहा जाय एवं परिग्रह में ममत्व न रखा जाय । एकान्त क्रियावाद व एकान्त अक्रियावाद को अज्ञानमूलक बताते हुए सूत्रकार ने कहा है कि एकान्त क्रियावाद का अनुसरण करने वाले तथा एकान्त अक्रियावाद का अनुसरण करने वाले दोनों ही वास्तविक धर्म अथवा समाधि से बहुत दूर हैं । मार्ग : मार्ग नामक ग्यारहवें अध्ययन का विषय समाधि नामक दसवें अध्ययम के विषय से मिलता-जुलता है। इसकी गाथा संख्या ३८ है। चूणिसंमत वाचना व वृत्तिसंमत वाचना में पाठभेद है। इस अध्ययन के विवेचन के प्रारंभ में नियुक्तिकार ने 'मार्ग' शब्द का विविध प्रकार से अर्थ किया है एवं मार्ग के अनेक प्रकार बताये हैं, यथा फलकमार्ग ( पट्टमार्ग ), लतामार्ग, आंदोलकमार्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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