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________________ सूत्रकृतांग १७९ नहीं। "पि ता' ऐसा पृथक-पृथक् न पढ़ कर 'पिता' ऐसा पढ़ने से संभव है कि ऐसा पाठ भेद हुआ हो । चूर्णिकार और वृत्तिकार दोनों ही 'पुत्र के वध करने' इस आशय में एक मत हैं। चूर्णिकार 'पिता' का अर्थ स्वीकार नहीं करते और वृत्तिकार 'पिता' का अर्थ स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हैं। पदच्छेद न करने की दृष्टि से ऐसा पाठ भेद हो गया है परन्तु विशेष विचार करने में मालूम होता है कि बौद्धत्रिपिटक के अन्तर्गत आए हुए संयुत्तनिकाय में एक ऐसी रूपक-कथा आती है जिसमें पिता पुत्र का वध करके उसका भोजन में उपयोग करता है । संभव है कि वृत्तिकार की स्मृति में संयुत्त निकाय की वह कथा रही हो और उसी कथा का आशय स्मृतिपथ में रखकर उन्होंने 'पिता पुत्र का वध करके' इस प्रकार के अर्थ का निरूपण किया हो। __ भगवान् बुद्ध ने अपने संघ के भिक्षुओं को किस दृष्टि से और किस उद्देश्य से भोजन करना चाहिए इस बात को समझाने के लिए यह कथा कही है। कथा का सार यह है : एक आदमी अपने इकलौते पुत्र के साथ प्रवास कर रहा है, साथ में पुत्र की माता भी है। प्रवास करते-करते वे तीनों ऐसे दुर्गम गहन जंगल में आ पहुँचते हैं जहां शरीर के निर्वाह योग्य कुछ भी प्राप्य न था। बिना भोजन शरीर का निर्वाह नहीं हो सकता और बिना जीवन-निर्वाह के यह शरीर काम भी नहीं दे सकता । अन्त में ऐसी स्थिति आ गई कि उनसे चला ही नहीं जाता था और इस जंगल में तीनों ही खत्म हो जायेंगे। तब पुत्र ने पिता से प्रार्थना की कि पिता जी, मुझे मार कर भोजन करें और शरीर को गतिशील बना लें। आप हैं तो सारा परिवार है, आप नहीं रहेंगे तो हमारा परिवार कैसे जीवित रह सकता है ? अतः बिना संकोच आप अपने पुत्र के मांस का भोजन करके इस भयानक अरण्य को पार कर जायें और सारे परिवार को जीवित रखें। तब पिता ने पुत्र के मांस का भोजन में उपयोग किया और उस अरण्य से बाहर निकल आए। इस कथा को कह कर तथागत ने भिक्षुओं से पूछा कि हे भिक्षुओं ! क्या पुत्र के मांस का भोजन में उपयोग करने वाले पिता ने अपने स्वाद के लिए ऐसा किया है ? क्या अपने शरीर की शक्ति बढ़े, बल का संचय हो, शरीर का रूपलावण्य और सौंदर्य बढ़े, इस हेतु से उसने अपने पुत्र के मांस का भोजन में उपयोग किया है ? __ तथागत के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भिक्षुओं ने कहा कि भदंत ! नहीं, नहीं। उसने एकमात्र अटवी पार करने के उद्देश्य से शरीर में चलने का सामर्थ्य आ सके इसी कारण से अपने पुत्र के मांस का भोजन में उपयोग किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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