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________________ १५४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उपर्युक्त सूत्र में मुमुक्षुओं के लिए किसी प्रकार की हिंसा न करने का विधान है। इसमें किसी अपवाद का उल्लेख अथवा निर्देश नहीं है । फिर भी वृत्तिकार कहते हैं कि प्रवचन को प्रभावना के लिये अर्थात् जैन शासन की कीर्ति के लिए कोई इस प्रकार का आरंभ-हिंसा कर सकता है : प्रवचनोद्भावनार्थ तु आरभते (आचारांगवृत्ति, पृ. १९२) 1 वृत्तिकार का यह कथन. कहाँ तक युक्तिसंगत है, यह विचारणीय है। मुनियों के उपकरण : आचारांग में भिक्षु के वस्त्र के उपयोग एवं अनुपयोग के सम्बन्ध में जो पाठ. हैं उनमें कहीं भी वृत्तिकारनिर्दिष्ट जिनकल्प आदि भेदों का उल्लेख नहीं है, केवल. भिक्षु की साधन सामग्री का निर्देश है। इसमें अचेलकता एवं सचेलकता का प्रतिपादन भिक्षु की अपनी परिस्थिति को दृष्टि में रखते हुए किया गया है । इस विषय में किसी प्रकार की अनिवार्यता को स्थान नहीं है। यह केवल आत्मबल व देहबल की तरतमता पर आधारित है। जिसका आत्मबल अथवा देहबल अपेक्षा. कृत अल्प है उसे भी सूत्रकार ने साधना का पूरा अवसर दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि अचेलक, त्रिवस्त्रधारी, द्विवस्त्रधारी, एकवस्त्रधारी एवं केवल लज्जानिवारणार्थ वस्त्र का उपयोग करने वाला ये सब भिक्षु समानरूप से आदरणीय हैं, इन सबके प्रति समानता का भाव रखना चाहिए । समत्तमेव समभिजाणिया। इनमें से अमुक प्रकार के मुनि उत्तम हैं अथवा श्रेष्ठ हैं एवं अमुक प्रकार के हीन हैं अथवा अधम हैं, ऐसा नहीं समझना चाहिए। यहाँ एक बात. विशेष उल्लेखनीय है । प्रथम श्रुतस्कन्ध में मुनियों के उपकरणों के सम्बन्ध में आने वाले समस्त उल्लेखों में कहों भी मुहपत्ती नामक उपकरण का निर्देश नहीं है । उनमें केवल वस्त्र, पात्र, कंबल, पादपुंछन, अवग्रह तथा कटासन का नाम है : वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुछणं ओग्गहं च कडासणं ( २, ५), वत्थं पडिग्गह कंबलं पायपुछणं ( ६, २), वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुछणं वा (८, १), वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा (८, २) । भगवतीसूत्र में तथा अन्य अङ्गसूत्रों में जहां-जहाँ दीक्षा लेने वालों का अधिकार आता है वहां-वहां रजोहरण तथा पात्र के सिवाय किसी अन्य उपकरण का उल्लेख नहीं दीखता है । यह हकीकत भी मुहपत्ती के सम्बन्ध में विवाद खड़ा करने वाली है। भगवती सूत्र में 'गौतम मुँहपत्ती का प्रतिलेखन करते हैं। इस प्रकार का उल्लेख आता है। इससे प्रतीत होता है कि आचारांग की रचना के समय मुँहपत्ती का भिक्षुओं के उपकरणों में समावेश न था किन्तु बाद में इसकी वृद्धि की गई । मुंहपत्ती के बांधने का उल्लेख तो कहीं दिखाई नहीं देता। संभव है बोलते समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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