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________________ अंग ग्रन्थों का अंतरंग परिचय : आचारांग 'यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह । " 'अच्युतोऽहम् अचिन्त्योऽहम् अतर्योऽहम्, अप्राणोऽहम् अकायोऽहम् अशब्दोऽहम् अरूपोऽहम्, अस्पर्शोऽहम् अरसोऽहम् अगन्धोऽहम्, अगोत्रोऽहम्, अगात्रोऽहम्, अवागोऽहम् अदृश्योऽहम् अवर्णोऽहम् अश्रुतोऽहम् अदृष्टोऽहम् ....२ , 9 आचारांग में बताया गया है कि ज्ञानियों के बाहु कृश होते हैं तथा मांस एवं रक्त पतला होता है—कम होता है : आगयपन्नाणाणं किसा बाहा भवंति पणु य मंस - सोणिए । १४५ उपनिषदों में भी बताया गया है कि ज्ञानी पुरुष को कृश होना चाहिए, इत्यादिः मधुकरीवृत्त्या आहारमाहरन् कृशो भूत्वा मेदोवृद्धिमकुर्वन् आज्यं रुधिरमिव त्यजेत् - नारदपरिव्राजकोपनिषद्, सप्तम उपदेश यथालाभमरनीयात् प्राणसंधारणार्थं यथा मेदोवृद्धिनं जायते । कृशो भूत्वा ग्रामे एकरात्रम् नगरे..... . संन्यासोपनिषद्, प्रथम अध्याय । आचारांग प्रथमश्रुतस्कन्ध के अनेक वाक्य सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन एवं दशवे - कालिक में अक्षरशः उपलब्ध हैं । इस सम्बन्ध में श्री शुब्रिंग ने आचारांग के स्वसम्पादित संस्करण में यथास्थान पर्याप्त प्रकाश डाला है । साथ ही उन्होंने आचारांग के कुछ वाक्यों की बौद्ध ग्रन्थ धम्मपद व सुत्तनिपात के सदृश वाक्यों से भी तुलना की है । आचारांग के शब्दों से मिलते शब्द : अब यहाँ कुछ ऐसे शब्दों की चर्चा की जाएगी जो आचारांग के साथ ही साथ परशास्त्रों में भी उपलब्ध हैं तथा ऐसे शब्दों के सम्बन्ध में भी विचार किया जाएगा जिनकी व्याख्या चूर्णिकार एवं वृत्तिकार ने विलक्षण की है । १. तैत्तिरीयोपनिषद्, ब्रह्मानन्द वल्ली २, अनुवाक ४ । २. ब्रह्मविद्योपनिषद्, श्लोक ८१-९१ । ३. आचारांग, १.६.३ । १० Jain Education International आचारांग के प्रारम्भ में ही कहा गया है कि 'मैं कहाँ से आया हूँ व कहाँ जाऊँगा' ऐसी विचारणा करने वाला आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई कहलाता है । आयावाई का अर्थ है आत्मवादी अर्थात् आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व स्वीकार करने वाला। लोगावाई का अर्थ है लोकवादी अर्थात् लोक का अस्तित्व मानने वाला । कम्मावाई का अर्थ है कर्मवादी एवं किरियावाई का अर्थ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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