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________________ अंग ग्रन्थों का अंतरंग परिचय : आचारांग १३३ आसन, वस्त्र, घी, तेल आदि पदार्थ भिक्षा द्वारा अथवा धार्मिक रीति से एकत्र कर यज्ञ करते । यज्ञ में वे गोवध नहीं करते। जब तक वे ऐसे थे तब तक लोग सुखी थे। किन्तु राजा से दक्षिणा में प्राप्त संपत्ति एवं अलंकृत स्त्रियों जैसी अत्यन्त क्षुद्र वस्तु से उनकी बुद्धि बदली। दक्षिणा में प्राप्त गोवृन्द एवं सुन्दर स्त्रियों में ब्राह्मण लुब्ध हुए। वे इन पदार्थों के लिए राजा इक्ष्वाकु के पास गये और कहने लगे कि तेरे पास खूब धन-धान्य है, खूब सम्पत्ति है। इसलिए तू यज्ञ कर । उस यज्ञ में सम्पत्ति प्राप्त कर ब्राह्मण धनाढय हुए। इस प्रकार लोलुप हुए ब्राह्मणों की तृष्णा अधिक बढ़ी और वे पुनः इक्ष्वाकु के पास गये व उसे समझाया । तब उसने यज्ञ में लाखों गायें मारी" इत्यादि । सुत्तनिपात के इस उल्लेख से प्राचीन ब्राह्मणों व पतित ब्राह्मणों का थोड़ाबहुत परिचय मिलता है । नियुक्तिकार ने पतित ब्राह्मणों को चित्रित ब्राह्मणों की कोटि में रखते हुए उनकी धर्मविहीनता एवं जड़ता की ओर संकेत किया । चतुर्वर्ण : नियुक्तिकार कहते हैं कि पहले केवल एक मनुष्य जाति थी। बाद में भगवान् ऋषभदेव के राज्यारूढ़ होने पर उसके दो विभाग हुए। बाद में शिल्प एवं वाणिज्य प्रारंभ होने पर उसके तीन विभाग हुए तथा श्रावकधर्म की उत्पत्ति होने पर उसी के चार विभाग हो गये। इस प्रकार नियुक्ति की मूल गाथा में सामान्यतया मनुष्य जाति के चार विभागों का निर्देश किया गया है। उसमें किसी वर्णविशेष का नामोल्लेख नहीं है। टीकाकार शीलांक ने वर्णों के विशेष नाम बताते हुए कहा है कि जो मनुष्य भगवान् के आश्रित थे वे 'क्षत्रिय' कहलाये । अन्य सब 'शूद्र' गिने गये। वे शोक एवं रोदनस्वभावयुक्त थे अतः 'शूद्र' के रूप में प्रसिद्ध हुए। बाद में अग्नि की खोज होने पर जिन्होंने शिल्प एवं वाणिज्य अपनाया वे 'वैश्य' कहलाये । बाद में जो लोग भगवान् के बताये हुए श्रावकधर्म का परमार्थतः पालन करने लगे एवं 'मत हनो, मत हनो' ऐसो घोषणा कर अहिंसाधर्म का उद्घोष करने लगे वे 'माहन' अर्थात् 'ब्राह्मण' के रूप में प्रसिद्ध हुए। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में निर्दिष्ट चतुर्वर्ण की उत्पत्ति से यह क्रम बिलकुल भिन्न है । यहाँ सर्वप्रथम क्षत्रिय, फिर शूद्र, फिर वैश्य और अन्त में ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जबकि उक्त सूक्त में सर्वप्रथम ब्राह्मण, बाद में क्षत्रिय, उसके बाद वैश्य और अन्त में शूद्र की उत्पत्ति बताई है। नियुक्तिकार ने ब्राह्मणोत्पत्ति का प्रसंग ध्यान में रखते हुए अन्य सात वर्णों एवं नौ वर्णान्तरों की उत्पत्ति का क्रम भी बताया है। इन सब वर्ण-वर्णान्तरों का समावेश उन्होंने स्थापनाब्रह्म में किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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