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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस सम्बन्ध में चूर्णिकार ने जो निरूपण किया है वह नियुक्तिकार से कुछ भिन्न मालूम पड़ता है । चूर्णि में बताया गया है कि भगवान् ऋषभदेव के समय में जो राजा के आश्रित थे वे क्षत्रिय हुए तथा जो राजा के आश्रित न थे वे गृहपति कहलाये । बाद में अग्नि की खोज होने के उपरान्त उन गृहपतियों में से जो शिल्प तथा वाणिज्य करने वाले थे वे वैश्य हुए। भगवान् के प्रव्रज्या लेने व भरत का राज्याभिषेक होने के बाद भगवान् के उपदेश द्वारा श्रावक्रधर्म की उत्पत्ति होने के अनन्तर ब्राह्मण उत्पन्न हुए । ये श्रावक धर्मप्रिय थे तथा ‘मा हणो मा हणो' रूप अहिंसा का उद्घोष करने वाले थे अतः लोगों ने उन्हें माहण-ब्राह्मण नाम दिया। ये ब्राह्मण भगवान् के आश्रित थे। जो भगवान् के आश्रित न थे तथा किसी प्रकार का शिल्प आदि नहीं करते थे व अश्रावक थे वे शोकातुर व द्रोहस्वभावयुक्त होने के कारण शूद्र कहलाये । 'शूद्र' शब्द के 'शू' का अर्थ शोकस्वभावयुक्त एवं 'द्र' का अर्थ द्रोहस्वभावयुक्त किया गया है । नियुक्तिकार ने चतुर्वर्ण का क्रम क्षत्रिय, शूद्र, वैश्य व ब्राह्मण-यह बताया है जबकि चूर्णिकार के अनुसार यह क्रम क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण व शूद्र-इस प्रकार है। इस क्रम-परिवर्तन का कारण सम्भवतः वैदिक परम्परा का प्रभाव है। सात वर्ण व नव वर्णान्तर :
नियुक्तिकार ने व तदनुसार चूर्णिकार तथा वृत्तिकार ने सात वर्णों व नौ वर्णान्तरों की उत्पत्ति का जो क्रम बताया है वह इस प्रकार है :
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र ये चार मूल वर्ण हैं । इनमें से ब्राह्मण व क्षत्रियाणी के संयोग से उत्पन्न होनेवाला उत्तम क्षत्रिय, शुद्ध क्षत्रिय अथवा संकर क्षत्रिय कहलाता है । यह पंचम वर्ण है । क्षत्रिय व वैश्य-स्त्री के संयोग से उत्पन्न होने वाला उत्तम वैश्य, शुद्ध वैश्य अथवा संकर वैश्य कहलाता है । यह षष्ठ वर्ण है। इसी प्रकार वैश्य व शूद्रा के संयोग से उत्पन्न होने वाला उत्तम शूद्र, शुद्ध शूद्र अथवा संकर शूद्र रूप सप्तम वर्ण हैं। ये सात वर्ण हुए। ब्राह्मण व वैश्य स्त्री के संयोग से उत्पन्न होने वाला अंबष्ठ नामक प्रथम वर्णान्तर है। इसी प्रकार क्षत्रिय व शूद्रा के संयोग से उग्र, ब्राह्मण व शूद्रा के संयोग से निषाद अथवा पाराशर, शूद्र व वैश्य-स्त्री के संयोग से अयोगव, वैश्य व क्षत्रियाणी के संयोग से भागध, क्षत्रिय व ब्राह्मणी के संयोग से सूत, शूद्र व क्षत्रियाणो के संयोग से क्षत्तृक, वैश्य व ब्राह्मणी के संयोग से वैदेह एवं शूद्र ब्राह्मणी के संयोग से चांडाल नामक अन्य आठ वर्णान्तरों की उत्पत्ति बताई गई है। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य वर्णान्तर भी हैं। उग्र व क्षत्रियाणी के संयोग से उत्पन्न होने वाला श्वपाक, वैदेह व क्षत्रियाणो के संयोग से उत्पन्न होने वाला वैणव, निषाद व अंबष्ठी अथवा शूद्रा के
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