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________________ अंग ग्रन्थों का अंतरंग परिचय : आचारांग १२५. डाला है तथा बताया है कि इनमें आर्या, जगती, त्रिष्टुभ, वैतालीय, श्लोक आदि का प्रयोग हुआ है । साथ ही बौद्ध पिटकग्रन्थ सुत्तनिपात के पद्यों के साथ आचा रांग प्रथमश्रुतस्कन्ध के पद्यों की तुलना भी की है । आश्चर्य है कि शीलांक से लेकर दीपिकाकार तक के प्राचीन व अर्वाचीन वृत्तिकारों का ध्यान आचारांग के पद्य - भाग के पृथक्करण की ओर नहीं गया । वर्तमान भारतीय संशोधकों, संपादकों एवं अनुवादकों का ध्यान भी इस ओर न जा सका, यह खेद का विषय है । आचाराग्ररूप द्वितीय श्रुतस्कन्ध की प्रथम दो चूलिकाएँ पूरी गद्य में हैं । तृतीय चूलिका में दो-चार जगह पद्य का प्रयोग भी दृष्टिगोचर होता है । इसमें महावीर की सम्पत्ति के दान के सम्बन्ध में उपलब्ध वर्णन छः आर्याओं में है । महावीर द्वारा दीक्षाशिविका में बैठ कर ज्ञातखण्ड वन की ओर किये गये प्रस्थान का वर्णन भी ग्यारह आर्याओं में है । भगवान् जिस समय सामायिक चारित्र अंगी - कार करने के लिए प्रतिज्ञावचन का उच्चारण करते हैं उस समय उपस्थित जनसमूह इस प्रकार शान्त हो जाता है मानो वह चित्रलिखित हो । इस दृश्य का वर्णन भी दो आर्याओं में है । आगे पाँच महाव्रतों की भावनाओं का वर्णन करते समय अपरिग्रह व्रत की भावना के वर्णन में पाँच अनुष्टुभों का प्रयोग किया गया है । इस प्रकार भावना नामक तृतीय चूलिका में कुछ चौबीस पद्य हैं । शेष सम्पूर्ण अंश गद्य में है । विमुक्ति नामक चतुर्थं चूलिका पूरी पद्यमय है । इसमें कुल ग्यारह पद्य हैं जो उपजाति जैसे किसी छन्द में लिखे गये प्रतीत होते हैं । सुत्तनिपात के आमगंधसुत्त में भी ऐसे छंद का प्रयोग हुआ है । इस छंद में प्रत्येक पाद में बारह अक्षर होते हैं । इस प्रकार पूरे द्वितीय श्रुतस्कन्ध में कुल पैंतीस पद्यों का प्रयोग हुआ है । आचारांग की वाचनाएँ : नंदिसूत्र व समवायांग में लिखा है कि आचारांग की अनेक वाचनाएँ हैं । वर्तमान में ये सब वाचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं किन्तु शीलांक की वृत्ति में स्वीकृत पाठरूप एक वाचना व उसमें नागार्जुनीय के नाम से उल्लिखित दूसरी वाचनाइस प्रकार दो वाचनाएँ प्राप्य हैं । नागार्जुनीय वाचना के पाठभेद वर्तमान पाठ से बिलकुल विलक्षण हैं । उदाहरण के तौर पर वर्तमान में आचारांग में एक पाठ इस प्रकार उपलब्ध है : कट्टु एवं अवयाणओ बिइया मंदस्स बालिया लद्धा हुरत्था । - आचारांग अ. ५, उ. १, सू. १४५. इस पाठ के बजाय नागार्जुनीय पाठ इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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