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अंग ग्रन्थों का अंतरंग परिचय : आचारांग
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___पिण्डैषणा अध्ययन में ग्यारह उद्देशक हैं जिनमें बताया गया है कि श्रमण को अपनी साधना के अनुकूल संयम-पोषण के लिए आहार-पानी किस प्रकार प्राप्त करना चाहिए । संयम-पोषक निवासस्थान की प्राप्ति के सम्बन्ध में शय्यैषणा नामक द्वितीय अध्ययन में सविस्तर विवेचन है। इसके तीन उद्देशक हैं । ईषणा अध्ययन में कैसे चलना, किस प्रकार के मार्ग पर चलना आदि का विवेचन है । इसके भी तीन उद्देशक हैं। भाषाजात अध्ययन में श्रमण को किस प्रकार की भाषा बोलनी चाहिए, किसके साथ कैसे बोलना चाहिए आदि का निरूपण है । इसमें दो उद्देशक हैं । वस्त्रषणा अध्ययन में वस्त्र किस प्रकार प्राप्त करना चाहिए इत्यादि का विवेचन है। इसमें भी दो उद्देशक हैं । पात्रषणा नामक अध्ययन में पात्र के रखने व प्राप्त करने का विधान है। इसके भो दो उद्देशक हैं । अवग्रहैषणा अध्ययन में श्रमण को अपने लिए स्वीकार करने के मर्यादित स्थान को किस प्रकार प्राप्त करना चाहिए, यह बताया गया है। इसके भी दो उद्देशक हैं । इस प्रकार प्रथम चूलिका के कुल मिलाकर पचीस उद्देशक हैं ।
द्वितीय चूलिका के सातों अध्ययन उद्देशकरहित हैं। प्रथम अध्ययन में स्थान एवं द्वितीय में निषोधिका की प्राप्ति के सम्बन्ध में प्रकाश डाला गया है । तृतीय में दीर्घशंका व लघुशंका के स्थान के विषय में विवेचन है। चतुर्थ व पंचम अध्ययन में क्रमशः शब्द व रूपविषयक निरूपण है जिसमें बताया गया है कि किसी भी प्रकार के शब्द व रूप से श्रमण में रागद्वेष उत्पन्न नहीं होना चाहिये । छठे में परक्रिया एवं सातवें में अन्योन्यक्रियाविषयक विवेचन है ।
प्रथम श्रुतस्कन्ध में जो आचार बताया गया है उसका आचरण किसने किया है ? इस प्रश्न का उत्तर तृतीय चूलिका में है । इसमें भगवान् महावीर के चरित्र का वर्णन है । प्रथम श्रुतस्कन्ध के नवम अध्ययन उपधानश्रुत में भगवान् के जन्म, माता-पिता, स्वजन इत्यादि के विषय में कोई उल्लेख नहीं है। इन्हीं सब बातों का वर्णन तृतीय चूलिका में है । इसमें पाँच महाव्रतों एवं उनकी पाँच-पाँच भावनाओं का स्वरूप भी बताया गया है। इस प्रकार 'भावना' के वर्णन के कारण इस चूलिका का भावना नाम सार्थक है।
चतुर्थ चूलिका में केवल ग्यारह गाथाएँ हैं जिनमें विभिन्न उपमाओं द्वारा वीतराग के स्वरूप का वर्णन किया गया है। अन्तिम गाथा में सबसे अन्त में 'विमुच्चइ' क्रियापद है । इसी को दृष्टि में रखते हुए इस चूलिका का नाम विमुक्ति रखा गया है। एक रोचक कथा :
उपर्युक्त चार चूलिकाओं में से अन्तिम दो चूलिकाओं के विषय में एक रोचक
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