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अंग ग्रन्थों का अंतरंग परिचय : आचारांग
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एवं उनसे प्रश्न किया गया है कि उन्हें मन की अनुकूलता सुखरूप प्रतीत होती है अथवा मन की प्रतिकूलता ? इस प्रकार इस उद्देशक में भी अहिंसाधर्म का ही प्रतिपादन किया गया है। तृतीय उद्देशक में निर्दोष तप का अर्थात् केवल देहदमन का नहीं अपितु चित्तशुद्धिपोषक अक्रोध, अलोभ, क्षमा, संतोष आदि गुणों की वृद्धि करने वाले तप का निरूपण है । चतुर्थ उद्देशक में सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र एवं सम्यक्तप की प्राप्ति के लिए यत्न करने का उपदेश है। इस प्रकार यह अध्ययन सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए प्रेरणा देने वाला है। इसमें अनेक स्थानों पर 'सम्मत्तदंसिणो, सम्म एवं ति' आदि वाक्यों में सम्मत्त-सम्यक्त्व शब्द का साक्षात् निर्देश भी है। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन का सम्यक्त्व नाम सार्थक है । विषयानुक्रम की दृष्टि से भी नियुक्तिकार व सूत्रकार में साम्य है।
नियुक्तिकार के कथनानुसार पांचवें अध्ययन के दो नाम हैं : आवंति व लोकसार । अध्ययन के प्रारम्भ में, मध्य एवं अन्त में आवंति शब्द का प्रयोग हुआ है अत: इसे आवंति नाम दे सकते हैं। इसमें जो कुछ निरूपण है वह समग्रलोक का साररूप है अतः इसे लोकसार भी कहा जा सकता है। अध्ययन के प्रारम्भ में ही 'लोक' शब्द का प्रयोग किया गया है । अन्यत्र भी अनेक बार 'लोक' शब्द का प्रयोग हुआ है । समग्र अध्ययन में कहीं भी 'सार' शब्द का प्रयोग दृष्टिगोचर नहीं होता । अध्ययन के अन्त में शब्दातीत एवं बुद्धि व तर्क से अगम्य आत्मतत्त्व का निरूपण है। यही निरूपण साररूप है, यों समझ कर इसका नाम लोकसार रखा गया हो, यह संभव है। इसके छः उद्देशक हैं । नियुक्तिकार ने इनका जो विषयक्रम बताया है वह आज भी उसी रूप में उपलब्ध है। इनमें सामान्य श्रमणचर्या का प्रतिपादन है ।
छठे अध्याय का नाम धूत है। अध्ययन के आरम्भ में हो 'अग्घाइ से धूयं नाणं' इस वाक्य में धूय-धूत शब्द का उल्लेख है । आगे भी 'धूयवायं पवेएस्सामि' यों कह कर धूतवाद का निर्देश किया है। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन का धूत नाम सार्थक है। हमारी भाषा में 'अवधूत' शब्द का जो अर्थ प्रचलित है वही अर्थ प्रस्तुत धूत शब्द का भी है। इस अध्ययन के पाँच उद्देशक हैं। इसमें तृष्णा को झटकने का उपदेश है। आत्मा में जो सयण याने सदन, शयन या स्वजन, उपकरण, शरीर, रस, वैभव, सत्कार आदि की तृष्णा विद्यमान है उसे झटक कर साफ कर देना चाहिए ।
सातवें अध्ययन का नाम महापरिन्ना-महापरिज्ञा है। यह अध्ययन वर्तमान में अनुपलब्ध है किन्तु इस पर लिखी गई नियुक्ति उपलब्ध है। इससे पता
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