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________________ अंगग्रन्थों का अंतरंग परिचय : आचारांग ११७ इस नाम का भी समावेश हो जाता है। इस प्रकार आयार, आचाल, आगाल, आगर एवं आइण्ण भिन्न-भिन्न शब्द नहीं अपितु एक ही शब्द के विभिन्न रूपान्तर हैं । आसास, आयरिस, अंग, आजाति एवं आमोक्ष शब्द आयार शब्द से भिन्न हैं। इनमें से 'अंग' शब्द का सम्बन्ध प्रत्येक के साथ रहा हुआ है जैसे आयारअंग अथवा आयारंग इत्यादि । आयार-आचार सूत्र श्रु तरूप पुरुष का एक विशिष्ट अंग है अतः इसे आयारंग-आचारांग कहा जाता है । 'आजाति' शब्द स्थानांगसूत्र में दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है : जन्म के अर्थ में व आचारदशा नामक शास्त्र के दसवें अध्ययन के नाम के रूप में। संभवतः आचारदशा व आचार के नामसाम्य के कारण आचारदशा के अमुक अध्ययन का नाम समग्र आचारांग के लिए प्रयुक्त हुआ हो। आसास आदि शेष शब्दों की कोई उल्लेखनीय विशेषता प्रतीत नहीं होती। प्रथम श्रुतस्कन्ध के अध्ययन : नवब्रह्मचर्यरूप प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययनों के नामों का निर्देश स्थानांग व समवायांग में उपलब्ध है। इसी प्रकार का अन्य उल्लेख आचारांगनियुक्ति ( गा० ३१-२ ) में भी मिलता है। तदनुसार नौ अध्ययन इस प्रकार हैं : १. सत्थपरिण्णा ( शस्त्रपरिज्ञा), २. लोगविजय ( लोकविजय ), ३. सीओसणिज्ज (शीतोष्णीय ), ४. सम्मत्त ( सम्यक्त्व ), ५. आवंति (यावन्तः), ६. धूअ (धूत), ७. विमोह (विमोह अथवा विमोक्ष), ८. उवहाणसुअ ( उपधानश्रुत ), ९. महापरिण्णा (महापरिज्ञा)। नंदिसूत्र की हारिभद्रीय तथा मलयगिरिकृत वृत्ति में महापरिण्णा का क्रम आठवाँ तथा उवहाणसुअ का क्रम नववा है। आचारांग-नियुक्ति में धूअ के बाद महापरिणा, उसके बाद विमोह व उसके बाद उवहाणसुअ का निर्देश है । इस प्रकार अध्ययनक्रम में कुछ अन्तर होते हुए भी संख्या की दृष्टि से सब एकमत हैं। इन नवों अध्ययनों का एक सामान्य नाम नवब्रह्मचर्य भी है। यहाँ ब्रह्मचर्य शब्द व्यापक अर्थ-संयम के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । आचारांग की उपलब्ध वाचना में छठा धूअ, सातवां महापरिण्णा, आठवां विमोह एवं नववां उवहाणसुअ--इस प्रकार का क्रम है । नियुक्तिकार ने तथा वृत्तिकार शीलांक ने भी यही क्रम स्वीकार किया है। प्रस्तुत चर्चा में इसी क्रम का अनुसरण किया जाएगा। उपयुक्त नौ अध्ययनों में से प्रथम अध्ययन का नाम शस्त्रपरिज्ञा है। इसमें कुल मिलाकर सात उद्देशक--प्रकरण हैं। नियुक्तिकार ने इन उद्देशकों का विषयक्रम निरूपण करते हुए बताया है कि प्रथम उद्देशक में जीव के अस्तित्व का निरूपण है तथा आगे के छः उद्देशकों में पृथ्वीकाय आदि छः जीवनिकायों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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