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प्राप्त रचना है - पार्श्वनाथ वृद्ध स्तवन (ढाल ४ )।
आदि
सखी लोद्रपुरो सलेयामणो चालो चालो हो जाय भेटां जिणंद की, तीरथ अ तिहुअण तिलो, मुझ दीठा हो ऊपजे आणंद कि । अंत कलश – इम लोद्रपुर वर महीय मंडण, जगन्न सुखदायक जयो; प्रभु दरस परसण शुद्धि समकित अधिक मति उज्वल भयो । जिनविजय सूरि सुसीस युगते जोड़ि जिनकीरति कहै; श्री पास चिंतामणि पसायै, लाभ मनवंछित लहै । १३२
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
जिनचंद सूरि
खरतरगच्छीय जिनलाभ सूरि के शिष्य थे। इनके पिता का नाम रुपचन्द और माता का केसर दे था। आपका परिवार वच्छावत मुहतां गोत्र का था। आपका जन्म कल्याण सार ग्राम (बीकानेर) में सं० १८०९ में हुआ था। आपका मूलनाम अनूपचंद था। आपकी दीक्षा मंडोवर में उत्साह पूर्वक सं० १८२२ में संपन्न हुई थी। आपका दीक्षोपरांत ‘उदयसार' नाम पड़ा था। आपको सं० १८३४ में गूढ़ा में सूरि पट्ट पर प्रतिष्ठित किया गया। आपकी मृत्यु सं० १८५६ ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को सूरत में हुई । १३३ आपकी रचना- ‘जिनबिंब' स्थापना अथवा पूजा स्त० कई स्थानों से प्रकाशित है। यह संञ्झायमाला और चैत्यवंदन स्तुति स्तवनादि संग्रह, भाग २ में प्रकाशित है । १३४
जिनदास गोधा
आपकी एक रचना 'सुगुरु शतक' का विषय है सुभाषितों में सदुपदेश; हिन्दी पद्य में यह रचना सं० १८५२ चैत्र कृष्ण अष्टमी को पूर्ण की गई थी । १३५ जिनदास गंगवाल -
आपने ‘आराधनासार टीका' की रचना सं० १८३० से कुछ पूर्व की क्योंकि प्राप्त प्रति का लेखन काल १८३० चैत्र शुक्ल १ बताया गया है। प्रति जैन मंदिर दबनाला, बूंदी में सुरक्षित है। इसका विषय आचार शास्त्र है । १३६ यह भी बहुत निश्चित नहीं है कि जिनदास गोधा और जिनदास गंगवाल एक ही व्यक्ति हैं अथवा भिन्न-भिन्न हैं।
जिनलाभ सूरि
आपका जन्म सं० १७८४ में बीकानेर निवासी साह पंचायन दास की पत्नी पद्मा देवी की कुक्षि से बायेऊ गॉव में हुआ था। आपका जन्म नाम लालचंद था। सं०
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