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________________ १५ जयसागर - जिनकीर्तिसूरि रचनाकाल- संवत अठार अक मां, रही राजनगर चोमास, जमालपुर ना पाडा माँ मुझ ऊपनो हरष उलास। कृष्णपक्षे आषाढ़ नो बलि पंचम ने बुधवार, तीरथमाल पूरी करी पामेंवा भव नो पार। तपगच्छ मांहि शिरोमणि श्री न्यायसागर गुरुराज, चरण सेवी जय इम भणे, मुझ सीधा वंछित काज। भवियण तीरथमाला तुम करो।१३१ . इसके कलश में भी इन्ही सूचनाओं को दुहराया गया है इसलिए उसे नहीं दिया जा रहा है। यह रचना 'जैनयुग' (आषाढ-श्रावण सं० १९८५) में चतुरविजय द्वारा संपादित होकर प्रकाशित हो चुकी है। जिनकीर्ति सूरि आप खरतरगच्छ के संत जिनविजय सूरि के शिष्य थे। आपके पिता शाह उग्रसेन मारवाड़ निवासी खीवसरा गोत्रीय वैश्य थे। इनकी माता का नाम उच्छरंग देवी था। इनका जन्म सं० १७७२ वैशाख शुक्ल सप्तमी को फलवर्धी में हुआ था। इनका मूलनाम किशनचंद था। सं० १७९७ में इन्हें जैसलमेर में भट्टारक पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। इन्होंने अनेक स्थानों में विहार किया, उपदेश-प्रवचन किया और साहित्य सृजन किया। सं० १८१९ में आपका विक्रमपुर में स्वर्गवास हुआ। आपकी रचना 'चौबीसी' (सं० १८०८ फाल्गुन १०, बीकानेर) का आदि साहिब नै भेटियौ, तब औसों मुझ नेह, मीजा माहरी मन तणी, तिहां जाय लागा नेह। रचनाकाल- संवत् वसु शिव शशी, तिथि इग्यारस अधिकाई, चित हरषित, फाल्गुण चौमासे, गुणीयण हिलमिल गाई रे। गुरुपरम्परा- श्री जिनसागर सूरि पटोधर, श्री जिनधम्म सहाई, श्री जिनचन्द्र सूरि सूरीश्वर, श्री जिनविजय सवाई रे। पदपंकज तेहने परसादे या उत्तम मति आई, श्री जिन की रति जिनगुण जपतां सफल भइ कविताई रे। सुख कारण जिनवरनी स्तवना चौबीसी स्तवन चौबीसी चितलाई, अधिक विनोद घणे आणंदे, चतुर नरां चतुराई रे। यह स्तवन जैन गुर्जर साहित्य रत्न भाग दो में प्रकाशित है। आपकी दूसरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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