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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १८६७ भाद्र शुक्ल १३, कार्तिकेयानुप्रेक्षा भाषा १८६३ श्रावण कृष्ण ३, समयसार भाषा १८६४ कार्तिक कृष्ण १०, आदि के अलावा पद संग्रह (लगभग २०० पर) सं० १८७४ आषाढ़ शुक्ल १० का भी उल्लेख हैं। ग्रंथ सूची ५ में (भक्तामर) स्तोत्र भाषा १८७० कार्तिक कृष्ण १२, परीक्षामुख १८६० इत्यादि।१२५ जयमल्ल
सं० १७६६ में इनका जन्म हुआ था। लांबिया ग्रामवासी समदडिया मोहता मोहणदास इनके पिता थे और मेहमादे इनकी माँ थी। विद्याध्ययनोपरांत इनका विवाह हुआ। मेड़ता में इन्हें भूधर ऋषि का दर्शन मिला और उनके उपदेश से प्रभावित होकर २२ वर्ष की वय में सं० १७८८ में इन्होंने दीक्षा ले ली। दीक्षा के पश्चात् इन्होंने जैन सिद्धान्तों का गहन अध्ययन किया। सोलह वर्ष तक एकांतर तप किया, तत्पश्चात् ग्यारह वर्ष पर्यंत गुरु के साथ जोधपुर, जयपुर, दिल्ली, आगरा, फतहपुर आदि स्थानों में विहार करते रहे। सं० १८४० में आप नागौर आये और कुछ काल पश्चात् बीमार पड़े तथा सं० १८५३ में शरीर त्याग किया। कहा जाता है कि अपने गुरु के स्वर्गवास के पश्चात् पचास वर्ष ये लेट कर नहीं सोये। सं० १८०२ से लेकर १८२७ के बीच की लिखी इनकी अनेक स्तुति, संञ्झाय, पचीसी, बत्तीसी, छत्तीसी, चरित्र, संवाद आदि-७१ रचनाओं का संग्रह ‘जयवाणी' शीर्षक से ज्ञानपीठ आगरा ने प्रकाशित किया है। इनकी कुछ रचनाओं की सूची अनलिखित है-सुबाहु कुमार रास सं० १८०२, आठढाल, विलाड़ा, नेमिनाथ चौ० ढाल ३३, गाथा १०४७, धर्म महिमा सं० १८०५, साधुवंदना सं० १८०७ जालौर; परदेशी चौ० १८०७, ३१ ढाल, खंधक ऋषि चौ० सं० १८११ लाडनूं, बीस विहरमान स्तवन सं० १८२४ मेड़ता, देवदत्ता चौ० १८२५, नागौर, तेतलीपुत्र चौ० सं० १८२५ नागौर, शब्दालपुत्र चौ० १८२५, नागौर; अर्जुनमाली चौ० १८२७, मृगलोढ़ा अधिकार सं० १८१२; अयवंति सुकमाल चौढालिया सं० १८२५ नागौर, नेमिस्तवन १८४४; इत्यादि। इनके, अलावा मृग पुरोहित छह ढालिया, देवकी चौ०, उदयराज चौ०, मेघकुमार चौ०, कार्तिक सेठ, सती द्रौपदी, महाशतक श्रावक, अम्बड चौढालिया, दरिद्र लक्ष्मी संवाद, मूर्ख पच्चीसी, नींद पच्चीसी, पर्यटन सप्तविंशिका, उपदेश तीसी, उपदेश बत्तीसी, वैराग्य बत्तीसी, बाल प्रतिबोध चौतीसी, पुण्य छत्तीसी, आत्मिक छत्तीसी, जीवा बयालिसी और चारमंगल सिद्धांत बावनी आदि रचनायें जयवाणी में संकलित रचनायें हैं।१२६ इनके संबंध में विवरण 'जयवाणी' में उपलब्ध है। अत: यहाँ विस्तारभय से नहीं दे रहा हूँ।
___ ढालसंग्रह नाम से इनकी तीन रचनाओं-परदेशी नी ढाल, मृगा लोढ़ा चरित्र और सुबाहुचरित्र-की एक प्रति जैन संभवनाथ मंदिर, उदयपुर में रखी है। इसमें परदेशी
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