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________________ जयकर्ण - जयचंद छावडा अंत- “भक्तामर की भाषा भली, जानिपयो विचि सत्ता मिली, मन समाध जपि करहि विचार, ते नर होत जय श्री सार।" १२२ इन्होने द्रव्य संग्रह का पद्यानुवाद भी किया था। सं० १८५९ में लिखित तत्त्वार्थ का पद्यानुवाद भी किया था। सं० १८५९ मे लिखित तत्त्वार्थ सूत्र वचनिका इनकी प्रथम वचनिका है। इनके अलावा 'प्रमेय रत्नमाला वचनिका, धन्यकुमार चरित वचनिका आदि इनकी अनेक गद्य रचनायें उपलब्ध है जिनके आधार पर इन्हें १९वीं शती का श्रेष्ठ गद्य लेखक मानना उचित है। गद्य के अलावा आपने पद्य में अनेक विनतियाँ और गेय पद रचे हैं। इस प्रकार ये गद्य और पद्य दोनों विधाओं में रचना करने में कुशल थे तथा जैन तत्त्वदर्शन के पारंगत विद्वान् थे। इनकी एक पद्य वद्ध चिट्टी प्रेमी जी ने प्रकाशित की है। यह चिट्टी सं० १८७० की है। कामता प्र० जैन ने उस चिट्टी का लेखक छाबड़ा जी को बताया है किन्तु वह उद्धरण और अन्तक्ष्यि के आधार पर वृंदावन की प्रतीत होती है। "जैसे वृंदावन मांहि नारायन केलिकरी, तैसे वृंदावन मित्र केरे है बनारसी। वंशरीति रागरंग ताल-ताल आये गये, मानठान आनि-आनि धरेगा बनारसी।" इससे तो यह पत्र वृंदावन द्वारा बनारसी को लिखा प्रतीत होता है न कि छाबड़ा का लिखा लगता है।१२३ । पंडित टोडरमल के पश्चात् गद्य के प्रमुख लेखकों में छाबड़ा निस्संदेह श्रेष्ठ गद्य लेखक हैं; इनके गद्य का नमूना देखिये "जैसे इस लोक विषै सुवर्ण अरु रूपा कू गालि एक किये एक पिण्ड का व्यवहार होय है तैसे आत्मा के अर शरीर के परस्पर एक क्षेत्र की अवस्था ही ते एकपणा का व्यवहार है। ऐसे व्यवहार मात्र ही करि आत्मा अर शरीर का एकपणा है। बहुरि निश्चय तै एकपणा नाती हैं जात पीला अर पांडुर है स्वभाव जिनिका ऐसा सुवर्ण अर रुया है तिनकै जैसे निश्चय विचारिये तब अत्यन्त मित्रपणा करि एक-एक पदार्थपणा की अनुपपत्ति है। तातै नानापणा ही है।"१२४ आपकी गद्य भाषा पर ढूढारी (राजस्थानी) का प्रभाव अधिक है। आपकी अनेक रचनाओं का वर्णन डॉ० कासलीवाल ने ग्रंथ सूची भाग ४ और ५ में किया है। जैसे भाग ४ में सर्वार्थ सिद्धि भाषा १८६१ चैत्र सुदी ५, अष्टपाहुड़ भाषा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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