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________________ कलश गुलाल - चतुरविजय द्वारामती नगरी भली सोरठदेस मझार, इन्द्रपुरी सी ऊपमा सुंदर बहु विस्तार। चौडा नौ जोजण तिहां लांबा बाराजाण, साठि-कोठि घर मांहि रे, बाहर थहत्तर प्रमाण।" अंत- "राजल नेम तणो व्याहलो जी गावसी जो नरनारी, भण गुण सुणसी भलो जी, पावसी सुख अपार। “प्रथम सावण चोथ सुकली बार मंगलवार ए, संवत् अठारा वरस तरेसठि माग जुल मझार ए। श्री नेमराजल क्रसन गोपी तास चरित बखानइ, सु तार सीखा ताहि-ताहि भाखी कही कथा प्रमाण ए।"१०१ गोविंददास आपने चौबीस गुणस्थानों की चर्चा हेतु 'चौबीस गुणस्थान चर्चा' नामक ग्रंथ की रचना सं० १८८१ फाल्गुन कृष्ण १० को की। यह कृति टोंक (राजस्थान) के टोडा रामसिंह नेमिनाथ जैन मंदिर में उपलब्ध है। प्रारंभ- गुण छियालिस करि सहित, देव अरहंत नमामि, नमो आठ गुणलिये, सिद्ध सब हित के स्वामी। रचनाकाल- अठारा सै ऊपर गनूं इक्यासी और, फागुन सुदी दसमी सुतिथि, शशिवासर सिरमौर। दादू जी को साधु है, नाम जो गोविंद दास, ताने यह भाषा रची, मनमांहिधारि उल्लास। इससे स्पष्ट है कि गोविंददास दादू पंथी साधु थे और जैनेतर कवि थे। अंत- "संस्कृत गाथा कठिन, अरथ न समझयो जाय; ता करण गोविंद कवि, भाषा रची बनाय।"१०२ यह रचना मूलत: संस्कृत में रही होगी। चतुरविजय तपा० जिनविजय के प्रशिष्य और नवलविजय के शिष्य थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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