________________
७०
प्रारंभिक पंक्तियाँ—
रचनाकाल
—
गुलाल
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
" सांवलिया श्री पास जी, पणमी चरण जिणंद, थुणु रास सुरतरु समो, सीखर समेत गिरींद। महीयल में तीरथ घणा, गिणतां लहूं न पार; ऊर्ध्व अधोमध लोक में, समेत शिखर गिरिसार ।”
इसमें गुरुपरंपरान्तर्गत विजयसेन, ऋद्धिविजय आदि गुरुजनों की वंदना है। इसकी अंतिम पंक्तियाँ निम्नवत् हैं
संवत् अठारै सै सैतालीसें, दशमी वदि असाड प्रसीधो जी । श्री समेतशिखर गिरि रास रुयडो, नगरी विशाला में कीधो जी । "
“तसु पद पंकज भंमर तणी पर गुलाबविजै गुण गायो जी, गायो रास शिखरगिरि केरो, सुणतां अति सुख पायो जी। रोम रोमांचित हरख धरी सब संघ सुणी मन भायो जी;
जे भवियण अ भणस्ये गुणस्ये, तस घर नवनिधि आयो जी । ९९
गुजराती गच्छ के नगराज की परंपरा में यह पुण्यविमल के प्रशिष्य और केसर के शिष्य थे। आपने 'तेजसार कुमार चौ०' की रचना सं० १८२१ श्रावण शुक्ल ८, रविवार को नौवा में पूर्ण की। इसकी अंतिम पंक्तियों में संबंधित सूचनायें उपलब्ध हैं।
यथा
“गछ गुजराती सहु जिन जाणें, श्री पूज्य नगराज्य बषाणै; पंच महाव्रत ना अनुरागी, गछनायक छै सबल सौभागी । पुन्यविमल ऋषि महामुनि राई, तेहना शिष्य केसर सुख दाई, ज्याकी जोड कला छै भारी, तसु शिष्य गुलाल कहै सुविचारी । संवत् अठार अने इकवीसे, श्रावण सुदि आडिम रवि दीसै, चोपइ जोड़ी गॉव नौवा मैं, भणतां गुणता बहु सुख पामै ।'
११००
गोपीकृष्ण
आपकी रचना 'नेमिनाथ व्याहलो (सं० १८६३ श्रावण कृष्ण ४) का प्रारंभ इन पंक्तियों से हुआ है—
Jain Education International
" श्री जिण चरण कमल नमो-नमो अणगार,
नेमनाथ र ढाल वणे व्याहव थहं सुखदाय।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org