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________________ गणेशरुचि - गुलाबराय गुणचंद्र यह सूरजमल के शिष्य थे। इन्होंने सं० १८५० में एक ग्रंथ 'चंद्रगुप्त चौढालिया' की रचना बीकानेर में की।९५ आपकी एक अन्य रचना 'धना चौढालियु' (सं० १८४३ कार्तिक शुक्ल १५, बीकानेर का नामोल्लेख देसाई जी ने किया है पर उन्होंने इसका विवरण उदाहरण नहीं दिया। जैन गुर्जर कवियों में इनकी प्रथम रचना चन्द्रगुप्त चौढालिय का विवरण-उदाहरण दिया है, उसे आगे प्रस्तुत किया जा रहा हैचन्द्रगुप्त चौढालियु (५७ गाथा सं० १८५० भाद्र शुक्ल ४, बीकानेर)। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ निम्नवत् हैं "विमल बोध उद्योतकर, शिवसुख वल्ली मूल, अहवा जिन वांदू जिणे, कीया कर्म निर्मूल। चंद्रगुप्त राजा तणो, सोले स्वप्न विचार, सुगुरु प्रसादे हिव कहूं, श्रोता श्रुति सुखकार।" इसकी अंतिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं "बीकानेरे जाणीये सा०, संवत् अठारे पचासा हो; मंगलवार संवत्सरी सा०, कीधो ओह अभ्यास हो। मुनिवर सूरजमल्ल जी सा०, अंतेवासी तास हो; गुणचंद कहै जिनधर्म थी, लहीये लील विलास हो।"९६ गुमानचंद आप खुशालचंद के शिष्य थे। खुशालचंद खरतरगच्छ के सन्त नगराज के शिष्य थे। आपकी एक रचना 'केशी गौतम चौढालिया' (सं० १८६७ मार्ग० शुक्ल ५, दशपुर) का उल्लेख श्री देसाई और श्री नाहटा दोनों ने किया है किन्तु दोनों विद्वानों ने अन्य विवरण-उदाहरण नहीं दिया है। नाहटा जी ने सूचना दी है कि इसकी हस्तप्रति आचार्य शाखा भंडार में सुरक्षित है।९७ गुलाबराय आपने 'शिखिर विलास' की रचना सं० १८४२ में की।९८ गुलाबविजय आप तपागच्छीय ऋद्धिविजय, भावजिय, मानविजय के शिष्य थें आपकी कृति हैं ‘समेतशिखर गिरि रास' (सं० १८४६-४७ आषाढ़ कृष्ण १०, विशाला), इसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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