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आदि
रचनाकाल
"श्री जिनवदन निवासिनी समरी शारद माय, आषाढ़भूति गुण गावतां, सामिणी करो पसाय रे । चतुर सनेही मोहना, सब गुण जाणी सयाणा रे, आषाढ़भूति महामुनि, देखत लोग लुभाणा रे । "
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
संवत अठार गुण चालिसे, दिन सोम अमावस जगीस, कहे खेमविजय सो विचार, श्री संघ सकल जयकार | '
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(गणि) गणेशरुचि
आप तपागच्छ के साधु थे। आपने विजयधर्म सूरि के आचार्यकाल में (सं० १८०९-१८४१) सं० १८१९ से पूर्व एक रचना 'श्रीपाल रास टवार्थ अथवा बालावबोध' नाम से की। इस टब्वा का मूल ग्रंथ 'श्री पाल रास' और उसके लेखक विनयविजय के यशस्वी शिष्य यशोविजय जी थे। इस बालावबोध के गद्य का नमूना नहीं मिला। इसकी प्रति के अंत में ग्रंथ परिचय संस्कृत में दिया हुआ है- भ० विजयधर्म सूरिश्वराणामनुज्ञां प्राप्य पं० गणेश रुचि गणिना बालावबोध कृतं यकिंचित् पूर्व लिखित दृष्टं किंचिद् गुरु गम्यात् किंचित् बुध्यनुसारात्कृतः स च बुद्धिमदभिः विबुधः संशोधनीयं बालावबोध ग्रंथा ग्रंथ श्लोक संख्या २४०० मूल रास संख्या भिन्न ज्ञेया । ९०
गिरिधरलाल
आप क्षेमशाखा के विद्वान् थे । आपने सं० १८३२ में 'पदमण रासो' जोधपुर में रचा। इसकी प्रति वृहद् ज्ञान भंडार में सुरक्षित है । ९१ श्री अगरचंद नाहटा ने १९वीं शती के प्रमुख कवियों में इन्हें भी गिनाया है परन्तु इनका कोई विवरण नहीं दिया है । ९२ डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल ने पं० गिरिधारीलाल की एक रचना 'सम्मेद शिखर यात्रा वर्णन' (सं० १८९९ भाद्र कृष्ण १२) का उल्लेख ग्रंथ सूची में किया हैं । ९३ यह निश्चित नहीं हो पाया कि गिरिधरलाल और पं० गिरधारी लाल एक ही व्यक्ति है अथवा दो भिन्नभिन्न लेखक हैं।
साध्वी गुलाबो
आपकी एक रचना 'नेमिनाथ के पंचकल्याणक सं० १८२५ की सूचना उत्तमचंद कोठारी ने अपनी ग्रंथ सूची में दी है, किन्तु अन्य विवरण उदाहरण उसमें नहीं है । ९४
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