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________________ क्षमाप्रमोद - क्षेमवर्धन क्षेमवर्धन तपागच्छीय हीरविजयसूरि; नगवर्धन; कमलवर्धन; रविवर्धन; धनवर्धन; विनीतवर्धन; वृद्धिवर्धन; प्रीतिवर्धन; विद्यावर्धन; हीरवर्धन के शिष्य थे। इनकी रचनासुरसुंदरी अमरकुमार रास (५३ ढाल, सं० १८५२, पारण) का। आदि "सरस वचन दे सरसती, कविजन केरी माय, कर जोड़ी करूं वीनती, करज्यो मुझ सुपसाय। इसके प्रारम्भ में ऋषम, शांति, नेमि और महावीर आदि तीर्थंकरो के साथ अपने गुरु की वंदना की गई है । तदोपरांत कवि कहता है रचनाकाल अंत --- "सुरसुंदरी सती कथा, कहिस्यूं गुरु आधार, उत्तम नां गुण गावतां, पामीजे भवपार । यह रचना नयनसुंदर द्वारा मूलतः लिखी गई थीं । / तेह तणी साविधे में तो पूरण कलश चढ़ाया जी; नयण वाण नाग शशि वरषे, जीत निशाण चडाया जी। "शील अने नवकार प्रभावें, प्रतख्य पुण्यनी शाला जी, भणतां गुणतां सुणतां लहीइं, ज्ञान अभंग रसाला जी । शंतिदास अने बरवतचंद शेठ रास अथवा पुण्य प्रकाश रास - (४५ ढाल, सं० १८७० आषाढ़ शुक्ल १३, गुरुवार, अहमदाबाद; आदि ६५ , "सरस वचन रस सरसती, कविजन केरी माय, कर जोड़ी करूं वीनती, करज्यो मुझ पसाय । इसमें शाह शांतिदास के वंशज वरवतचंद के गुणों का गान किया गया है। रचनाकाल - "संवत पूर्ण नाग मुनि शशि, मास असाढ़ विशाल, शुक्ल तेरस गुरुवार दिन, सरस कथा गुणमाल । Jain Education International इसमें हीरविजय सूरि द्वारा अकबर को प्रतिबोध और जजिया कर से मुक्ति का उल्लेख किया गया है। इसमें विजयसेन, राजसागर सूरि, लक्ष्मीसागर, वृद्धिसागर, कल्याणसागर, पुण्यसागर, उदयसागर, आणंदसागर और शांतिसागर की भी वंदना की गई हैं। यह रास जैन ऐ० रास माला भाग १ में प्रकाशित हैं। 'श्रीपाल रास' (सं० १८७९, पाटण) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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