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भी महत्त्व पूर्ण रचना है । ७८
आप गद्य और पद्य विधा में रचना करने में पटु थे तथा संस्कृत, हिन्दी आदि भाषाओं तथा जैनागम के निष्णात विद्वान् थे । वस्तुतः ये खरतरगच्छ के १९वीं (वि०) शती के लेखकों में सर्वाधिक प्रसिद्ध विद्वान् लेखक थे। उपाध्याय क्षमा कल्याण बीकानेर के केसरदेसर ग्राम निवासी ओशवंशीय उत्तम परिवार में सं० १८०१ में उत्पन्न हुए • थे। ११ वर्ष में आपने अमृतधर्म से दीक्षा ली। धर्म प्रचारार्थ आपने गुजरात, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों की यात्रायें की और धर्म-प्रवचन दिए । आपकी कुछ रचनायें जैसे अष्टाहिका, अक्षय तृतीया, होलिका, मेरुतेरस आदि संस्कृत रचनाओं का इतना व्यापक प्रचार था कि उनका राजस्थानी और हिन्दी भी अनुवाद किया गया था। स्तुति चतुष्टय में ऋषभ, शांति, नेमि और पार्श्व के बड़े मार्मिक और प्रभावशाली स्तोत्र विनतियाँ हैं। आपका रचनाकाल सं० १८२६ से १८७३ तक का दीर्घकाल है । ७९ इस लम्बी अवधि में उन्होंने पचासो उत्तम रचनायें की है। आपकी शिष्य परम्परा में कई विद्वान और सुकवि तथा लेखक हो गये है। इस प्रकार आप १९वीं शती के खरतरगच्छ के श्रेष्ट रचनाकारों में अग्रगण्य है।
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
क्षमाकल्याण पाठक ने सं० १८५० में जीवविचार वृत्ति और साधु प्रतिक्रमण विधि और श्रावक प्रतिक्रमण विधि आदि रचनायें की हैं। ८° हो सकता है कि यह पाठक क्षमाकल्याण और उपाध्याय क्षमाकल्याण एक ही रचनाकार हों ।
क्षमाप्रमोद
आप रत्नसमुद्र के शिष्य थे। इन्होंने धर्मदत्त चन्द्रधौल चौ० १८२६ जैसलमेर, निगोद विचार गीत ( गाथा ४८) और 'सत्यपुर महावीर स्तवन' आदि की रचना की है। प्रथम रचना धर्मदत्त चन्द्रधौल चौ० की प्रतिलिपि इन्होंने स्वयं लिखी थी जो यति वृद्धि चन्द्र संग्रह जेसलमेर में सुरक्षित है । ८१ इनके शिष्य अनोपचन्द्र ने 'गोडी पार्श्वनाथ वृहत् स्तवन सं० १८२५ में लिखा जिसका विवरण यथास्थान दिया जा चुका है।
क्षमामाणिक्य
आप भी खरतरगच्छीय विद्वान लेखक थे। आपकी कुछ गद्य कृतियों का पता चला है जैसे सम्यकत्व भेद (गद्य) सं० १८३४ राजपुर; गणधरवाद बाला० १८३८ (स्वयं लिखित प्रति प्राप्त); क्षेत्र समास बाला० इत्यादि ८२, किन्तु इनके गद्य नमूने उपलब्ध नहीं है।
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