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क्षमाकल्याण
दक्षिणदेशे नागपुर तिथी तेरस जाण। श्री जिन भक्ति पसाय थी, इम वरणव्या सुजाण;
वाचक अमृतधर्म गणि, सीस क्षमाकल्याण।
यह रचना' चैत्यवंदन चौबीसी' में प्रकाशित है। जयतिहुअण स्तोत्र भाषा (४१ कड़ी, महिमापुर) आदि- “परम पुरुष परमेशिता, परमानंद निधान,
पुरसादांणी पास जिन, वंदू परम प्रधान।
यह रचना वंगदेशीय शोभाचंद के पुत्र तनसुखराय के आग्रह पर की गई थी। इसके अलावा अनेक स्तवन, स्तोत्र और लघु रचनायें आपने की हैं जैसे शंखेसर स्व०, सूरत सहस्रफणा पार्श्व स्तव, ऋषभ स्तव आदि। 'अइमत्ता ऋषि संञ्झाय' (३ ढाल २७ कड़ी) मोटु संञ्झाय माला संग्रह में और शेष अधिकांश रचनाये उपाध्याय क्षमाकल्याण जी विरचित चैत्य वंदन स्तवन संग्रह में प्रकाशित हैं।७६ आपकी एक रचना 'स्तुति चतुष्टय' महत्त्वपूर्ण है, उसका विवरण दिया जा रहा है। आदि- "जइ-जइ नाम निरंद नंद सिद्धाचल मंडन,
जइ-जइ प्रथम जिणंद चंद भवदक्ख विहंडन।"७७
इन पद्यवद्ध कृतियों के अतिरिक्त आपने कई गद्य रचनाओं द्वारा जैन हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है। कुछ का विवरण प्रस्तुत है
श्रावक विधि संग्रह प्रकाश (भाषा) सं० १८३८, इसके अंत में रचनाकाल पद्य में इस प्रकार दिया गया है
“श्री जिनचंद सुरिंद नितु, राजत गछ राजान, वाचक अमृतधर्म गणि, सीस क्षमाकल्याण। सय अठार अडतीस, जेसलमेरु सुथान,
श्रावक विधि संग्रह कीयौ, मूल ग्रंथ अनुमान।
प्रश्नोत्तर सार्धशतक (भाषा) सं० १८५३ वैशाख, कृष्ण २, बुधवार, रचनाकाल- सय अठार तेपन समय, बदि वैशाख सुमास,
बुधवार संपूरन रच्यो, बीकानेर सुपास।
यशोधर चरित बाला०–सं० १८७३ जैसलमेर, यह ग्रंथ मूलत: संस्कृत में था। इसके अलावा अखंड चरित्र (सं० १८५४ आषाढ़ शुक्ल ३, बुधवार पालीताणा
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