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की होगी। एक पद का नमूना प्रस्तुत है
क्षमाकल्याण
अंत—
"सहज हिंडोलना झूलत चेतनराज । जहाँ धर्म्य कर्म्यं संजोग उपजत, रस सुभाउ विभाउ । जहाँ सुगम रूप अनूप मंदिर सुरूचि भूमि सुढ़ंग, तहां ज्ञान दरषन षंध अविचल छरन आड अभंग। X X X X ते नर विलक्षण सदय लक्षण करत ग्यान विलास, कर जोरी भगत विशेष विधि सौ नमत् केशौदास | "
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आप खरतरगच्छीय जिनलाभसूरि, अमृतधर्म के शिष्य थे। इन्होंने खरतरगच्छ की पट्टावली संस्कृत में लिखी है। इनकी कई उत्तम रचनायें संस्कृत में है जैसे गौतम काव्यकृति, पार्श्वस्तव चूरि, विज्ञान चंद्रिका इत्यादि । इन्होंने हिन्दी (मरूगुर्जर) में भी पर्याप्त लिखा है जिसका विवरण आगे दिया जा रहा है। ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में संकलित जिनलाभ सूरि निर्वाण गीतम् आपकी महत्त्वपूर्ण रचना है। इसके अंत की दो पंक्तियाँ दी जा रही हैं।
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
रचनाकाल
" चरण कमल की थापना, अतिशयवंत विराजै रै, दास क्षमाकल्याण नौ वंदन हूओ शुभ काजै । ७५
‘गिरनार गजल' (गाथा ५९ संवत् १८२८ महा, बद, २) “संवत अठार अड़वीसैक, महा बदि बीज के दिवसैक; कीनी यात्रा गढ़ गिरनार, कहिता वर्णव्यो गिरनार; धरके अखरम नसौधार, गढ़ युँ वर्णव्यो गिरनार; खरतरपती है सुप्रमाण, कवि युं कहत है कल्याण।
'थावच्या चौ० अथवा चौढालियुं (सं० १८४७ विजयादशमी, महिमापुर) यह लघु रास कृतियों में प्रकाशित है। संपादक रमणलाल शाह है। 'चौबीस जिन नमस्कार' (अथवा चैत्यवंदन) चौबीसी सं० १८५६ ज्येष्ठ शुक्ल १३ नागपुर का आदि
“जय-जय जिनवर आदि देव तिहुअण जण तात, श्री मरूदेवा नाभिनंद, सोवन सम गात।
सय अठार छप्पन समै, सुदी जेठ पिछांण;
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