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________________ कृष्णविजय शिष्य - केशोदास आपने गद्य में भी रचनायें की हैं उनमें 'अध्यात्म प्रश्नोत्तर' (सं० १८८२ महा शुद ५, रवि, पाली) के अंत में रचनाकाल इस प्रकार वर्णित है खीमाविजे रे खिमाना भंडार, जिन उत्तम पद ना दातार। अहवा गुरु ने नीत सेवो सहू, निज रूप प्रगटे सुख लहो बहु। अमीकुंवर तस प्रणमी पाय, ग्रंथ कीयो भविजन सुखदाय, अल्पबुद्धि में रचना करी, शुद्ध करो पंडित जन मिली। मरूधर देश पालीनगर मझार, करयो चौमास धरी हर्ष अपार, वर्ष बयासी संवत् अठार, महा सूद पांचम ने रविवार। प्रश्नोत्तर ग्रंथ कीधो सार, अंतिम अर्थ ने हितकार। इसके गद्य भाग का नमूना नहीं मिला, इसे भीमसिंह माणेक ने प्रकाशित किया है। अध्यात्म गीता बाला० (सं० १८८२ आषाढ़ शुक्ल २, गुरु पाली) आपकी दूसरी उपलब्ध गद्य रचना है पर उद्धरण इसका भी अनुपलब्ध है। इसकी मूल रचना देवचंद ने गुजराती प्रधान मरूगुर्जर में लिखी थी। कुशलविजय __ रचना- 'त्रैलोक्य दीपक काव्य' (सं० १८१२ वैशाख शुक्ल३)। मरूगुर्जर' हिन्दी जैन साहित्य का वृहत् इतिहास भाग ३ (१८वीं वि०) के पृष्ठ ९४ पर इनका विवरण दिया जा चुका है। चूँकि ये १८वीं और १९वी शताब्दी के कवि है इसलिए पूर्व निश्चयानुसार इनका विवरण १८वीं शती के रचनाकारों के साथ दिया गया है। त्रैलोक्य दीपक के अलावा आपकी एक अन्य सरस रचना नेमि राजुल शलोको भी है।७२ केशरी सिंह आप जयपुर निवासी, भट्टारकीय परम्परा के विद्वान थे। उन्होंने जयपुर के दीवान बालचंद छाबड़ा के पुत्र जयचंद छाबड़ा के आग्रह पर सं० १८७३ में 'वर्द्धमान पुराण की भाषा टीका की। ये जयपुर के लश्कर दिगंबर जैन मंदिर में रहते थे। इसके गद्य का नमूना देखें-“अहो या लोक विषे ते पुरुष धन्य है ज्या पुरवन का ध्यान विषै तिष्ठता चित्त उपसर्ग के सैकण्डेन करिहु किंचित् मात्र ही बिक्रिया कू नहीं प्राप्ति होय है।७३ इसका रचनाकाल फाल्गुन शुक्ल १२ क० च० कासलीवाल ने ग्रंथ सूची में बताया है। यह रचना बालचंद के पौत्र ज्ञानचंद के आग्रह पर की गई थी। केशोदास आपकी रचना 'हिडोलना' की प्रति १८१७ की प्राप्त है अत: रचना कुछ पहले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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