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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुरु परम्परा का उल्लेख करके वंदन किया गया है। रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है
"आप आपां दे उद्यम कीधो, श्री गुरु चरण पसाया लाल, संवत् अठार ने व्यासिया बरसे, श्रावण मास ने आया लाल। उज्वल छठ दिवसैं मृगुवारे, ढाल छपन्न करी ध्याया लाल,
रत्नभये गुण मोटा दीठा अक अवतारी दाया लाला ५२ अंत मे इसका कलश निम्नांकित है
दान शियल तप चोथो भाव, ओ च्यारे छे भवजल नाव, च्यारें उल्लासे छपन्न ढाल, भणतां गुणतां मंगलमाल। सत्र छे अनयोगिद्धार, ते प्रभु भाख्या च्यारि प्रकार
तिम उल्लास में रचिया च्यार, ऋषभविजय कहे जय जयकार
नेमिनाथ विवाहलो (१७ ढाल सं० १८८६ आषाढ़ शुक्ल १५, बरेजा) आदि
'सरसति चरण नमी करी रे, श्री शंखेसर राय रे,
वाहलो माहरे नेमजी गायतूं रे। अंत- "दंपति अविचल प्रीतडी अ, राखी जग आख्यात,
संवत् अठार ने छासीई, मास अषाढ़ महंत, पुन्यम दिन गुण गाइया ओ, रही बारेजो चोमास
विजयानंद सूरि गछपति ओ, दिनकर परे परकास।" / राम सीता नां ढालिया (७ ढाल सं० १९०३ मागसर वद, बुधवार) आदि- "श्री सरसति धवल हंसासनी, कवियण नी तु माय,
सरस वयण उपगारणि, ललि ललि प्रणभुं पाया" यह रचना बीसवी शताब्दी की है इसलिए इसका विस्तार नहीं किया जा
रहा है।
इसमें कहा गया है कि श्री रामचन्द्र मुनि सुव्रत के समकालीन थे। इसमें सती सीता के उज्वल चरित्र पर विशेष बल दिया गया है। पंदर तिथि के अलावा इन्होंने 'राजिमती बारमासा' और स्थुलिभद्र संञ्झाय की भी रचना की है। राजिमती बारमासा में कवि ने राजुल के विरह का वर्णन परिपाटी विहित बारहमासा शैली में किया है। श्रावण का एक
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