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________________ ऋषभ सागर उदाहरण देखिये "राजुल बोली मोहनबेली, श्रावण मास में सहेली, नेम गया मुझसे मेहली। आवो हरिवंश तणा राजा, राखो निज कुल नी माझा रे, आवो' स्थूलिभद्र संज्झाय में स्थूलिभद्र और कोशा वेश्या की सरस कथा का संक्षिप्त वर्णन है। इसकी प्रारम्भिक पंक्ति है "धूलिभद्र मुनिगण मां-" यह रचना प्रस्तुत ऋषभ विजय की है या किसी अन्य ऋषभ की यह निश्चित नहीं हो पाया है क्योंकि जै० मु० क भाग ३ में इसे ऋषभदास की कृति कहा गया है।५३ ऋषभ सागर तपा० जशवंतसागर, जैनेन्द्र सागर, आगमसागर, विनोदसागर के शिष्य थे। इन्होंने विनयचट रास ४ उल्लास ५८ ढाल, १५३० कड़ी सं० १८३० भाद्र शुक्ल १५ बुधवार, पोरबंदर में लिखा। इसका आदि इस प्रकार है “पार्श्वनाथ जिनवर प्रणम्य, त्रेतीसमो जिन तास, अलिय उपद्रव उपशमे, बारे गडवास। पन्नग राख्यो परिजलत, अद्भुत कर्यो उपगार, सुर पदवी आपी सरस, धन्य विश्व आधार। रचनाकाल- संवत् गगन वन्नी (वहि) ते जाणो, सिद्धिचक्र मे माणो जी, भाद्रवा शुदि पौनम बुधवारे, संवत्सर सुप्रमाणो जी। इसमें यशवंतसागर से लेकर विनोदसागर आदि गुरुजनों की वंदना की गई है। अंत इन पंक्तियों से हुआ है। “पोबिंदर चौमासं कीg, श्री विजयधर्म सुदीस जी, तेह तणी सेवा मां रहीने, रचीओ रास सुजगीस जी। 'प्रेमचंद संघ वर्णन रास' अथवा सिद्धाचल शत्रुजय रास (२१ ढाल, सं० १८४३ जेष्ठ कृष्ण ३, सोमवार, सूरत) आदि- “सुमर मात चक्रेसरी, वाणी आप विगत गुण गाइस गिरुआ तणा, आछी धरे उकता" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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