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________________ ४१ उत्तमविजय२ - उत्तमविजय३ रविवार) का प्रारम्भ "अक दिवस वसे रहनेमि रहियो छे काउस ध्याने;" रचनाकाल- संवत् पंच्योतर अठारें, कार्तिक शुद रुद्रा रविवारे, चित चोक ओ च्यार धारे।। गुरु गोतम नामे तस पाया, तस शिष्य खुशालविजय भाया, तस सीसे उत्तम गुण गाया। - यह रचना जैन संञ्झायमाला भाग एक में बालाभाई द्वारा प्रकाशित की गई है। धनपाल शीलवती नो रास (४ उल्लास ७० ढाल, सं० १८७८ मागसर ५, सोमवार, पेथापुर) का आदि "श्री विभु पद रज वर्णन होवें ढोक समान, त्रिदशा सुरस्तवे जेहने मूंकी अलगू मान।" इसके बीच २ में प्रसादगुण संपन्न हिन्दी भाषा और सवैया छंद का मनोहर प्रयोग मिलता है। कवि एक ऐसे ही छंद में अपनी विनय शीलता के चलते अपनी अल्पज्ञता का वर्णन करता हुआ लिखता है"जैसे कोऊ महासमुद्र तरिबे कू भुजानि सौ उदित भयो है तजिनाव रो, जैसे गिरि ऊपर बिरछ फल तोरिबे कू बावन पुरुष कोउ उमंगे उतावरो। जैसे जलकुण्ड में निरखि शशी प्रतिबिंब ताके गहिबें कं कर नीचो करे बावरो. तैसे मै अलपबुद्धि रास को आरंभ कीनो गुणी मोहि हंसेगे कहेंगे कोऊ डाबरो।" रचनाकाल- “संवत् नग गुनी अहि विधु वरसे, मृगसिर मास सोहायो जी, तिथी पंचमी शीतवार विरोचन, विजय मुहूर्त मन भायो जी।" अंत- "होस्ये घर-घर मंगलमाला सुणतां रास उल्लास जी, धण कण कंचण लीलालच्छी, उत्तमविजय विलास जी।" "ढूंढकरास अथवा लुम्पकलोपक तपगच्छ ज्योत्पत्ति वर्णन रास" (७ ढाल, सं० १८७८ पोष शुक्ल १३, राधनपुर) का प्रारम्भ सरसती चरण नमि करी कहेस्युं, ढुढंक धर्म अधोरे रे, धर्मवतां धरें ध्यान भरे छे, ढुंढा खावे ढोरे रे। रचनाकाल- “अठार अठ्योत्तर बरसे शुदि पोषना तेरस दिवसें रे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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