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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्राद्धविधि वृत्ति बाला०
सं० १८२४ के मूल लेखक रत्नशेखर सूरि हैं इस प्रकार हम देखते है कि उत्तम विजय १८वीं शती के अंतिम दशक और १९वीं के प्रथम दो दशकों में रचनाशील रहे। इन्होंने गद्य और पद्य दोनों विधाओं में कई रचनायें की।३७ उत्तमविजय२
यह तपागच्छ के यशस्वी संत यशोविजय, गुणविजय, सुमतिविजय के शिष्य थे। 'पिस्तालीस आगम नी पूजा' (कार्तिक शुक्ल पंचमी सं० १८३४, बुधवार, सूरत) आपकी उपलब्ध कृति है। यह विजयधर्म सूरि के सूरित्वकाल में रची गई थी। इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
"सुखकर साहिब सेविई, गोड़ी मंडल पास, श्री शंखेश्वर जगधणी, प्रणमु अधिक उलास। आगम-अगम अछे घj, नय गम भंग प्रमाण, स्वादनादातम सोधतां, कहीई तत्त्व निर्वाण। हूं नवि जाणुं श्रुत भणी, मंतमति अनाण,
तोपण माहरी मुखरता, करजो कवि प्रमाण। रचनाकाल- संवत् आठार चौत्रीसन माने, कार्तिकी सुदी पंचमी ज्ञाने जी,
बुधवारे ओ आगम स्तवना, पूरण करी शुभ वचने जी।
गुरुपरम्परान्तर्गत विजयधर्म सूरि के साथ जसविजय आदि की वंदना की गई है। इसकी अंतिम दो पंक्तियाँ देकर यह विवरण समाप्त कर रहा हूँ,
"आगम नांण जो भणसों गास्यें, तस घर मंगलमालो जी,
जग मांहि जस लच्छि वरसों, जय जयकार विशालो जी।"३८ उत्तमविजय३
आप तपागच्छ के संत विमलविजय, शुभविजय, हितविजय, माणिक्यविजय, धनविजय, गौतमविजय, खुशालविजय के शिष्य थे। उन्होंने कई रचनाएं की, उनमें से कुछ प्राप्त रचनाओं का संक्षिप्त विवरण आगे दिया जा रहा है। नाम रचना
रहनेमि राजिमती चोक (चार चोक, चारकड़ी सं० १८७५ कार्तिक शुक्ल १२,
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