SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमृत मुनि - अमृतसागर मार्ग की अनुगामिनी हो जाती है। इनकी दूसरी उपलब्ध रचना 'विमलाचल अथवा सिद्धाचल अथवा श→जय तीर्थमाला अथवा रास सं० १८४०/४५ में विजयजिनेन्द्र सूरि के सूरित्वकाल में रची गई। यह रचना एक लोकप्रिय गरबा के धुन पर रचित है। इसका प्रारम्भ इन पंक्तियो से हुआ है “विमलाचल बाल्हा वारू रें, भले भवियण भेटो भाव मां, तुम सेवो ओ तीरथ तारु रे, जिम त पडो भव ना दाव मां। जग सधला तीरथ नो नायक, तुमे सेवो सुखदायक रे।' १४ गुरु परम्परा और रचनाकाल का विवरण निम्नलिखित पंक्तियों में दिया गया है"तपगच्छ गयण दिणंद रुप छाजे रे, श्री विजयदेव सूरिंद अधिक दिवाजे रे। रत्नविजय तस शिष्य पंडित राया रे, गुरुराज विवेक जगीस तास पसाया रे। कीधो अह अभ्यास, अठार चालीसे रे (पाठांतर) सर युग धृति वरसे रे। उज्वल फागुन मास तेरस दिवसे रे, श्री विमलाचल चित्त धरी गुण गाया रे, कहे अमृत भवियण नित्य नमो गिरिराया रे।"१५ इसकी अनेक हस्तलिखित प्रतियां प्राप्त है जिनसे इसकी लोकप्रियता का अनुमान होता है, यह रचना शत्रुजय तीर्थमाला रास अने उद्धारादिक नो संग्रह में भीमसिंह माणेक द्वारा प्रकाशित है। रचनाकाल में आये शब्दों का मान धृति१८, युग=४ और सर=५ माना जाय तो सही रचनाकाल १८४५ ही ठहरता है। श्री विजयजिनेन्द्र सूरि का काल १८४१ से प्रारम्भ होता है इसलिए १८४० इसका रचना काल न होकर सं० १८४५ ही उचित लगता है। अमृतसागर आप तपागच्छ के संत धर्मसागर, शांतिसागर, श्रुतसागर, बुद्धिसागर, हंससागर, वसंतसागर, माणिकसागर, दानसागर के शिष्य थे। आपने 'पुण्यसार रास (३१ ढाल, ७७६ कड़ी, सं० १८१७ पुण्यमास शुक्ल ५, रविवार को पालणपुर में बनाया। रचना के अंत में हीरविजय से लेकर धर्मसागर और धनसागर तक के गुरुजनों की वंदना की गई है श्री धनसागर गुरु सुखदायी, दिन-दिन सुजस सवाया जी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy